अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता डॉ अंशुल अविजीत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय, एक बहुत ही गंभीर विषय आपके समक्ष मैं लाया हूं। कैसे इतिहास को विकृत किया जा रहा है, कैसे इतिहास में कोई जो महान शख्सियत हैं, उनको बेदखल किया जा रहा है, इतिहास में ये सुधार नहीं है, ये तब्दीलियां लाई जा रहीं हैं, ये एक षडयंत्र है, ये एक साजिश है और ये काफी दिन से मोदी सरकार करती चली आ रही है। तो अब क्या हुआ है – नई बात ये हुई है कि एक बड़ी शख्सियत, जिनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है इतिहास में, जो एक व्यक्ति नहीं हैं, एक इदारा थे, एक संस्था थे मौलाना आज़ाद, उनको एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की पॉलिटिकल साइंस की किताब से बेदखल किया गया है, खारिज किया गया है, हटाया गया है, अब उनका नाम उसमें नहीं है। तो ये नई बात अब उभर कर आई है।
मौलाना आजाद कोई परिचय के मोहताज नहीं, आप सब उनके योगदान के बारे में जानते हैं। पहले एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की किताब में उनका जिक्र किया गया था कि संविधान सभा के संदर्भ में, 1946 में जो संविधान सभा हुई थी, उसमें कई कमेटियां बनी थीं, उसमें 8 मुख्य कमेटियां थीं और उसमें मौलाना आजाद की एक भूमिका थी, एक अहम भूमिका थी, कई कमेटियों में वो अध्यक्ष थे, सभापति भी थे, वो उनका संचालन भी करते थे, लेकिन अब उनका नाम-ओ-निशान नहीं है किताबों में, ये एक अन्याय है। और लोगों का है पंडित नेहरू का है, अभी इस वक्त राजेन्द्र प्रसाद जी का है, सरदार पटेल जी का है और लोगों का है, लेकिन कब तक रहेगा, किन-किन का नाम रहेगा, ये नहीं जानते। इस सरकार में इतिहास में कोई महफ़ूज़ नहीं, कोई सुरक्षित नहीं, कब बेदखल किए जाएंगे, पता नहीं। एक नए इतिहास की रचना हो रही है। मौलाना आजाद का जो वर्चस्व था, जो उनका तजुर्बा था, जो एक बड़े विद्वान थे, ये सब लोग जानते हैं, लेकिन मैं कुछ पृष्ठभूमि में जाना चाहता हूं क्योंकि ये लोग तो जाएंगे नहीं, इन्होंने तो मिटा ही दिया। इनका महत्व तो किसी को समझाएंगे नहीं तो इसीलिए मैं ही समझा देता हूं। वो भारत के सबसे पहले शिक्षा मंत्री थे। देखिए बड़ी अजीब विडम्बना यहां पर, जो भारत के सबसे पहले शिक्षा मंत्री जी थे, जिनका इतना सक्रिय योगदान था, नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा की जो स्कीम की नींव जिन्होंने डाली थी, वो मौलाना आजाद ने और आज मौलाना आजाद का ही नाम बेदखल किया जा रहा है हमारे पाठ्यक्रम से, हमारी शिक्षा से, कितनी अजीब विडम्बना है। स्वतंत्रता संग्राम में, आजादी की लड़ाई में उनका योगदान था, आप अच्छी तरह जानते हैं, उनका अखबार था ‘अल-हिलाल’ जिस माध्यम से वो सामाजिक न्याय की बात करते थे, समावेशी विकास की बात करते थे, हिन्दू-मुस्लिम समता की बात करते थे। वो एक तरह से गांधी जी की विचारधारा के मुरीद थे, वो स्वदेशी और स्वराज की वकालत करते थे। जो असहयोग आंदोलन हुआ 1920 में, वो कई जगह भारत में अभियान चलाया गांधी जी ने, अंग्रेजों के खिलाफ संचालन वो ही कर रहे थे। 1940 से लेकर 1945 तक कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना आजाद थे और उनकी ही अगुवाई में, उनके ही नेतृत्व में कैबिनेट मिशन के जो समझौते हो रहे थे। तो एक महान शख्सियत, अब वो नहीं पढ़े जाएंगे, ऐसा ही हो रहा है और ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि मैं आपको बता दूं दोस्तों, कि कुछ दिन पहले ही मौलाना आजाद जो फैलोशिप थी, जिसकी शुरुआत यूपीए-2 ने की थी 2009 में, जिसमें जो विद्यार्थी हैं, उनको 5 साल तक एक वित्तीय सहायता दी जाती है, जो 6 नोटिफाइड अल्पसंख्यक समुदाय हैं उनके लिए, वो भी खत्म कर दी गई है। तो कुछ लोगों का नाम-ओ-निशान मिटाया जा रहा है इतिहास से, तो कैसे मोड़़ पर आ गए हैं हम? ये सरकार, मोदी सरकार इतिहास को किस मोड़ पर ले जा रही है और बड़ी शान्ति से, चुपचाप, बेशर्मी से ये तब्दीलियां ला रही है, इतिहास को खोखला कर रही है। ये उपमा सही होगी जैसे दीमक किसी लकड़ी को खोखला करता है, वैसे ही हमारा इतिहास खोखला होता जा रहा है। आखिर, इसको खत्म करके फेंक दिया जाएगा और मुझे लगता है एक नई इमारत खड़ी की जाएगी, जो नकली इमारत होगी, जो बेईमान इमारत होगी, जिस पर असत्यता होगी, जो सत्य नहीं होगी वैसी इमारत यहां पर खड़ी करने की कोशिश की जा रही है। ऐसा हो रहा है यहां पर। यहां पर ऐसी साजिश है और ये वो लोग कर रहे हैं, जो संघ परिवार के लोग हैं, जिनके इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम में, आजादी की लड़ाई में योगदान के बारे में तो आप अच्छी तरह जानते हैं और नहीं जानते, तो मैं बता देता हूं। योगदान था ही नहीं। भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने कह दिया था कि भाग नहीं लेना, उनकी कोई भूमिका नहीं थी, न कोई बलिदान था, न कोई कुर्बानियां थी, कुछ नहीं था। वही तिरंगे का जिन्होंने अनादर किया, कहा कि नहीं भाग लेंगे, संविधान बनाने में कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अपना इतिहास वो खुद बना रहे हैं, ख़ुद-ब-ख़ुद बना रहे हैं। तो मैं ये सिलसिला आपको बता दूं कि हो क्या रहा था कुछ दिनों से। ये संसद में वैसा ही हो रहा है जैसे इतिहास को बदला जा रहा है। एक संसदीय प्रणाली होती है, संसद का रिकॉर्ड होता है, विपक्ष जो आवाज उठाता है, सरकार को आईना दिखाता है, जो आलोचना करता है, जो दिक्कतें हैं उनको दर्ज करता है जो गरीब आदमी हैं उनकी, वो भी आप मिटा रहे हैं। तो भाई वो तो हमारी विरासत है न, वो तो संसदीय प्रणाली की एक धरोहर है, वो तो अगली पीढ़ी तक जानी चाहिए, एकतरफा इतिहास तो हो नहीं सकता, लेकिन अगर हम अडानी जी और मोदी जी की सांठगांठ की बात करते हैं तो आप उसको हटा देते हैं, ये दर्ज नहीं करने देते, इतिहास इस तरह से भी विकृत होता चला जा रहा है। हर तरफ आप देखें, हर पहलू में देखें, जिधर देखें, हर मोड़ पर देखें ये इतिहास को विकृत करने की, ध्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं और एक काल्पनिक छाया इतिहास, जिसकी नींव बेईमानी है, उस पर खड़ा करना चाहते हैं।
Related posts
0
0
votes
Article Rating
Subscribe
Login
0 Comments
Oldest
Newest
Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments