अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:कांग्रेस ने बुधवार को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर मोदी सरकार के दस साल के शासन को श्रमिकों के लिए अन्याय काल बताया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस दौरान कांग्रेस के घोषणा पत्र में श्रमिक न्याय के तहत दी गई पांच गारंटियों का भी जिक्र किया। नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि साल 2014-2023 के बीच में श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी स्थिर हो गई है। खासकर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वास्तविक मजदूरी में गिरावट आई है। वहीं, डॉ. मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल (2004-2014) में खेत मजदूरों की वास्तविक मजदूरी दर में हर साल 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। लेकिन पिछले 10 साल में खेत मजदूरों की मजदूरी दर हर साल 1.8 प्रतिशत गिरी है। यह श्रमिकों पर भारी अन्याय है।
श्रमिकों के साथ हो रहे अन्याय को देखते हुए कांग्रेस ने श्रमिक न्याय को लेकर पांच गारंटियां दीं है, वह विशेष महत्व रखती है। श्रम का सम्मान के तहत दैनिक मजदूरी कम से कम 400 रुपये, जो मनरेगा में भी लागू होगी। सबको स्वास्थ्य अधिकार के तहत 25 लाख रुपए का हेल्थ-कवर, जिसमें मुफ़्त इलाज, अस्पताल, डॉक्टर, दवा, टेस्ट, सर्जरी शामिल है। शहरी रोजगार गारंटी के तहत शहरों के लिए भी मनरेगा जैसी नई योजना लाई जाएगी। सामाजिक सुरक्षा के तहत असंगठित मजदूरों के लिए जीवन और दुर्घटना बीमा दिया जाएगा। सुरक्षित रोजगार के तहत मुख्य सरकारी कार्यों में ठेका प्रथा से मजदूरी बंद होगी। इस दौरान जयराम रमेश ने भाजपा नेताओं द्वारा संविधान बदलने के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाजपा के 400 पार का असली मकसद यह है कि उन्हें संविधान बदलने का अधिकार मिले। पहले प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार, फिर कई भाजपा उम्मीदवारों और सांसदों ने संविधान बदलने की बात कही। ये पहली बार नहीं है, जब भाजपा-आरएसएस की ओर से संविधान बदलो का नारा आया है। आरएसएस वर्ष 1949 से बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान को बदलने की मांग कर रहा है।जयराम रमेश ने आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर और उसके तत्कालीन प्रमुख गुरु गोलवलकर के लेखों में संविधान की आलोचना का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि 30 नवंबर, 1949 को आरएसएस की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में लिखे लेख में कहा गया कि संविधान मनुस्मृति के आधार पर नहीं बनाया गया है। संविधान मनुवादी सिद्धांतों, मनुवादी आदर्शों के खिलाफ है। बार-बार ऑर्गेनाइजर में संविधान सभा की आलोचना हुई। इन लेखों का मतलब एक ही था कि संविधान में मनुस्मृति का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए संविधान को भारतीय संविधान कहना गलत होगा। ये हमेशा आरएसएस की टिप्पणी रही है, खासतौर से बाबा साहेब को निशाना बनाया गया था। बाद में 1960 के दशक में दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान की कड़ी आलोचना की। 2017 में आरएसएस अध्यक्ष मोहन भागवत ने खुद आरक्षण के खिलाफ एक बयान दिया था, बाद में उनको दबाव के कारण उसे वापस लेना पड़ा।
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