संवाददाता : प्रधानमंत्री मोदी की याददाश्त शानदार है. उन्होंने हाल ही में एक रैली में 1984 में मुलायम सिंह यादव पर हुए हमले का जो जिक्र किया वो सामान्य बात नहीं है. पीएम मोदी ने मुलायम पर जिस हमले का जिक्र किया उसका आरोप कांग्रेस के एक नेता पर लगा था. पीएम मोदी ने 33 साल पुरानी उस घटना का जिक्र आज के संदर्भ में किया था. आज उस घटना की अहमियत पहले से और बढ़ गई है.
राजनीति या तो याददाश्त मजबूत करने का नाम है या कुछ घटनाओं से यादों को मिटाने का और मोदी की पुरानी यादें ताजा करने की ये कोशिश नाकाम नहीं रहने वाली है. हाल ही में हुए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ के बाद बहुत से लोग दोनों पार्टियों के कड़वे रिश्तों का इतिहास भुलाने में लगे हैं. जबकि, इसमें कोई शक नहीं कि मुलायम ने अपने राजनैतिक करियर की सबसे बड़ी लड़ाई कांग्रेस के खिलाफ ही लड़ी.
याद कीजिए इटावा के कद्दावर कांग्रेसी नेता बलराम सिंह यादव और मुलायम के बीच की सियासी रंजिश को, जिसने कई लोगों की जान ली. अस्सी के दशक में दर्शन सिंह बनाम मुलायम की जंग के किस्से लोग आज भी याद करते हैं. लेकिन, मुलायम ने अपने राजनैतिक अस्तित्व की सबसे मुश्किल लड़ाई उस वक्त लड़ी थी, जब वीपी सिंह यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
चंबल का अभियान
1980-82 में मुख्यमंत्री रहते हुए वीपी सिंह ने चंबल और यमुना के बीहड़ों से डकैतों के सफाए के लिए बड़ा अभियान छेड़ा था. पुलिस को खुले हाथों से डकैतों को पकड़कर मारने की छूट दे दी गई थी. किसी पर अगर डकैतों का साथ देने का शक भी होता था तो पुलिस उससे सख्ती से निपटती थी. डकैतों के खिलाफ छेड़े गए इस अभियान में मुलायम बेहद आसान टारगेट बन गए.
उस वक्त ही इंदिरा गांधी को पिछड़े वर्ग के एक बड़ी राजनैतिक ताकत के तौर पर उभरने का एहसास हुआ. चौधरी चरण सिंह पिछड़े वर्ग की उस ताकत के प्रतीक थे. मुलायम सिंह यादव…चौधरी चरण सिंह के शागिर्द थे और उनका उस वक्त राजनैतिक भविष्य उज्जवल दिख रहा था.इटावा, एटा, कानपुर, आगरा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनैतिक बीहड़ों में जिसके पास बाहुबल होता था, वही राजनीति का सितारा माना जाता था. 1980 के दशक में पिछड़े वर्ग की राजनीति जोर पकड़ रही थी. मुलायम जैसे पिछड़े वर्ग के नेता राजनीति में राजपूत और ब्राह्मण नेताओ को चुनौती दे रहे थे.
साफ है कि उस दौर में मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीति के बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे थे. वो रोज एक सियासी मोर्चे पर जंग लड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे. अगले कुछ सालों में मुलायम ने खुद को ‘मंडल मसीहा’ के तौर पर पेश किया और पिछड़े वर्ग के लोगों हितों के सबसे बड़े संरक्षक बनकर उभरे.
संघर्ष के साथी
संघर्ष के उन दिनों में मुलायम के सबसे करीबी सूबेदार थे शिवपाल यादव. शिवपाल ने भाई की जान बचाने के लिए कई बार खुद की जान की बाजी लगाई. वीपी सिंह ने डकैतों के खिलाफ अभियान छेड़ा तो उन्होंने पुलिस को हत्याओं की छूट दे दी.
वीपी सिंह ने इस एक कदम ने प्रशासन का अपराधीकरण कर दिया. तब से ही मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस आमने-सामने नजर आए. मुलायम की हर राजनैतिक लड़ाई कांग्रेस के खिलाफ होती थी. इसका अपवाद सिर्फ नारायण दत्त तिवारी थे.नारायणदत्त तिवारी का समाजवाद के प्रति झुका मुलायम के अपने राजनैतिक सिद्धांतों के अनुकूल था. बीहड़ों की राजनीति करते-करते मुलायम सिंह ने जिंदगी का एक ही सबक सीखा, वफादारी का सम्मान करना और धोखे को कभी भी माफ नहीं करना. ये कुछ वैसा ही सिद्धांत था जैसा सिसली के माफियाओ के बीच था.
यही वजह है कि मुलायम ने कभी भी वी पी सिंह को माफ नहीं किया. हालांकि, दोनों ने नब्बे के दशक में मिलकर काम किया और कांग्रेस के खिलाफ सियासी लड़ाई लड़ी. जब वीपी सिंह ने राजीव गांधी से बगावत की तो मुलायम उनके साथ आए.
सोनिया को पीएम बनने से रोका
लेकिन, जब 1989 के चुनाव के बाद जनता दल में नेतृत्व की लड़ाई लड़ी जा रही थी, तो मुलायम ने वीपी सिंह का नहीं, चंद्रशेखर का साथ दिया था.और आपको याद दिला दें कि किस तरह मुलायम सिंह ने आखिरी मौके पर अपना समर्थन वापस खींचकर सोनिया गांधी को पीएम बनने से रोका था.
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की हार के बाद सोनिया ने जीत का दावा किया था और सरकार बनाना चाहती थीं. एक वोट से वाजपेयी सरकार गिरने के बाद सोनिया ने राष्ट्रपति भवन के सामने ही 272 सांसदो के समर्थन का दावा किया था.
लेकिन, सिर्फ मुलायम के विरोध के चलते सोनिया पीएम नहीं बन सकी थीं. मुलायम को समर्थन न देने के बाद कांग्रेस और मुलायम सिंह में राजनैतिक जंग का एक और दौर छिड़ गया था. जो 1999 से 2009 तक चला था.कांग्रेस ने लगातार मुलायम का हर कदम पर विरोध किया. कांग्रेस ने तब ही मुलायम का पीछा छोड़ा जब उनका राजनैतिक कद इतना बड़ा हो गया कि कांग्रेस उन्हें छू भी नहीं सकती थी.कांग्रेस और मुलायम की राजनैतिक रंजिश का इतिहास, छल, प्रपंच, साजिशों और धोखे से भरा हुआ है.राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को आज अखिलेश और राहुल गांधी की जोड़ी और यूपी के लड़कों के नारे के बीच, मुलायम और कांग्रेस की सियासी रंजिश का इतिहास भी पढ़ना चाहिए. इसमें कई सबक छुपे हुए हैं.