नई दिल्ली/ अजीत सिन्हा
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा नमस्कार सबको, साथियों। मेरे साथ सभी समिति के सदस्यगण, उपस्थित सभी पत्रकार बंधुओं व छायाकार बंधुओं, जैसा आप सबको मालूम है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नव संकल्प चिंतन शिविर, जो चल रहा है, उसमें किसान और खेती के वर्तमान परिस्थितियों पर ये जो एक ग्रुप बनाया है, उसका कन्वीनर मैं हूं और उन्होंने बड़े ही, कोई 40 साथियो ने अपने-अपने विचार रखे हैं और वर्तमान परिस्थिति पर किसान के कल्याण और कृषि उत्पादन बढ़ाकर किसान की आय बढ़ाने पर और खेती से जुड़े अन्य विषयों पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया है और यहाँ पर आने से पहले सभी किसान संगठनों से हमारी बात हुई और उनकी समस्याओं पर भी हुई और अभी मोटा-मोटी चर्चा हुई है। उन विषयों पर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं कि जो-जो विषय salient features जो लिए गए हैं, वो हैं – जैसे:-
1. Indebtness of farmers
2. Questions of Legal guarantee of MSP
3. Climate changes effect on agriculture
4. Direct transfer benefits
5. Doubling of farmers income
6. PM Fasal Bima Yojana
7. Institutional Credit Investment
8. Green Revolution
9. Livestock being Horticulture
उसका मैं थोड़ा बाद में तफ्सील करुंगा और कुछ विषयों पर मेरे साथी बता देंगे, मैं बता दूंगा।
एक बड़ा भारी सवाल है question of this legal guarantee of MSP, then Climate changes, उस पर Effect on agricultural, न्याय, डायरेक्ट ट्रांसफर बैनिफिट हैं, उसके बारे में। डबलिंग ऑफ फॉर्मर इंकम, पीएम फसल बीमा योजना, institutional credit, investment, livestock dairying, horticulture, green revolution. Now Congress wants Evergreen revolution, White revolution and Blue revolution and other issues of subsidy.
जहाँ तक सवाल है इनडेप्थनेस का, उसके बारे में कहना चाहूंगा कि प्रेजेंट गवर्मेंट, NDA government promised doubling of the income of farmers, किसानों की 2022 तक आमदनी दोगुनी करने का इनका विचार था। आमदनी तो दोगुनी नहीं की इन्होंने, लेकिन कर्जा डबल कर दिया। 2014 में जो कर्जा हमारा 31 मार्च, 2014 में जो 9.64 लाख करोड़ था, वो बढ़कर आज 16.80 लाख करोड़ हो गया है। मतलब किसान कर्जे में दब गया है और केन्द्र सरकार की तरफ से उस कर्जे से निकालने के लिए किसानों की तरफ कोई राहत का हाथ नहीं बढ़ाया गया है। हाँ, जहाँ –जहाँ हमारी कांग्रेस की सरकारें थी, चाहे वो आपकी राजस्थान में जैसे 15,602 करोड़ का हमने कर्जा माफ किया किसान का, मध्यप्रदेश में 2018 में 11,912 करोड़ का और पंजाब में 2017 में 4,696 करोड़ का, इसी प्रकार कर्नाटक में 22,548 करोड़ का। Congress government has tried their best to mitigate the problem of farmers. जो डिस्कशन का व्यू है, क्या होना चाहिए, तो जो आज अंडर कंसीडरेशन है और जब ये फाइनल ड्राफ्ट हो जाएगा, उसमें हम देंगे।
फर्स्ट ऑफ ऑल सुझाव आए हैं कि We must setup a national farm debt relief commission to suggest wages and to resolve debt relative grievances of the farmer, through Conciliation and negotiation as done in the case of industrial loans. मतलब इंडस्ट्री के लोन जैसे हैं, वो नेगोशिएशन से हल होते हैं, तो Agricultural should be treated as industry as far as banking is concerned. जो बैंकिंग का सवाल है, उसमें होना चाहिए।
दूसरा, आपने देखा कि जो मुद्रा लोन जो चला, उसके लिए, उसमें 10 लाख तक की गारंटी रही। लेकिन किसान अगर डिफॉल्ट करता है, तो उसकी जमीन नीलाम कर दी जाती है और उसके ऊपर क्रिमिनल केस चलाया जाता है। तो ये डिस्कशन में है कि किसान के डिफॉल्ट में किसी की जमीन नीलाम ना हो, किसी के ऊपर क्रिमिनल केस ना चलाया जाए। जैसे मुद्रा में किया, जब वहाँ नहीं है, तो यहाँ क्यों हैं, Why discrimination? तो इस किस्म की है, मतलब हम कर्जे माफी से पूर्णतया: कर्ज मुक्ति तक जाएंगे। वो कैसे जाएंगे, वो सबसे पहले सवाल आता है कि MSP का। MSP लीगल गारंटी होनी चाहिए, नहीं होनी चाहिए। तो आम सहमति ये है कि MSP पर लीगल गारंटी अनिवार्य है, होनी चाहिए। ये सारी किसान यूनियन की भी मांग है और सभी की है और किसान के नाते मैं भी चाहता हूं कि MSP पर गारंटी होनी चाहिए।ये दूसरा MSP लीगली जो है, एनफोर्सेबल राइट ऑफ फॉर्मर और MSP should be based on recommendation of Swaminathan C-2 formula which was recommended by me also as chairman of the working group जिसमें पंजाब, बंगाल और बिहार के चीफ मिनिस्टर मेंबर थे मेरे साथ, तो C2 फॉर्मूले पर होना चाहिए। ताकि रोज जिस प्रकार से कीमतें बढ़ रही है, कॉस्ट ऑफ इनपुट बढ़ रही है, वो उस पर इफेक्ट ना करे। अगर उसको आपको कंट्रोल में रखना है तो कॉस्ट ऑफ इनपुट भी कम करनी पड़ेगी और आपका जो कैल्क्युलेशन का तरीका है, जो प्रेजेंट CACP ही करता है, that is not the right, उसके लिए कैल्क्युलेशन के तरीके के लिए नई फोर्मेशन बनानी पड़ेगी, क्योंकि टोटल कितनी कोस्ट रिजनल वाइज है, अलग-अलग है, ये बड़ा कॉम्प्लिकेटेड सब्जेक्ट है। So उसके लिए you have to do.और MSP रिजीम जो है, it has to be expanded to all agricultural produce, otherwise डायवर्सिफिकेशन भी नहीं हो सकेगा। डायवर्सिफिकेशन किसान कब करेगा, अगर गेहूं और चावल का वो है, पैडी का, तभी कर पाएगा, जब उसका नुकसान नहीं होगा और उसमें बहुत देश का नुकसान होता है, that is only.
दूसरा विषय MSP का हुआ, ये हुआ। तीसरा विषय जैसे महत्वपूर्ण मैं बता रहा हूं, बाकी मेरे साथी आपको बताएंगे।
फसल बीमा योजना, फसल बीमा योजना जो बिल्कुल हमारे जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना है, वो कामयाब नहीं है। प्रीमियम ज्यादा जाता जाता हैं, कंपंसेशन कम मिलता है, क्योंकि प्राइवेट कंपनी है उसमें। उनकी लॉस ऑफ असेसमेंट और अवेलेबिलिटी वो नहीं है। तो हमें उसको रीडू करना पड़ेगा। रिडिजाइन सब करना पड़ेगा।
आपने देखा As reported they have earned a profit of Rs. 34,000, crores, private companies, they have already earned the profit of Rs. 34,000 crores, but, farmer doesn’t get, उसको नहीं मिलता, उसका लॉस नहीं मिलता है। तो उसका एक ही तरीका है कि कुछ फसलों की है, कुछ की नहीं है। यूनिवर्सल जो है, इंश्योरेंस हो, मतलब all crops should be insured, all crops, मतलब गिरदावरी है, गिरदावरी के बेस पर है। गिरदावरी सब पटवारी करते हैं। अब वो असेसमेंट किस हिसाब से करते हैं और सेक्टर, This sector should be run by public sector companies, not by private companies. जो प्रीमियम फिक्स करें, वो प्राइवेट सेक्टर की कंपनी नो प्रॉफिट नो लॉस पर चलें, than only farmer would be benefited likewise जो क्रॉप्स लॉसेस हैं, due to climate change उसको भी ये कवर करें। ऐसा हमें डिजाइन करना पड़ेगा। Assessment of loss of crop to be carried out by government, not by insurance companies, स्टेट गवर्मेंट जो भी होगी, it can…, because the public pressure this in this company. इसी तरह से हैं और जो हमारे साथी, Now I will request, क्योंकि ये जो किसान की डेफिनेशन है, वो बड़ी वाइड है। कई दफा अब चर्चा में आते हैं, मनरेगा में कहेंगे हमारे साथी। किसान मतलब लैंड लॉर्ड जिसकी जमीन है। टेनेंट, एग्रीकल्चर वर्कर Every man connected with agriculture, he is Kisan, तो हम तो सारा कांग्रेस जो हैं, It is for every Kisan.टी.एस. सिंह देव ने कहा कि न्याय योजना उस सोच और परिकल्पना को हकीकत में उतारने की पहल है, जिसमें हर व्यक्ति को एक न्यूनतम वार्षिक आय हो सके। और किसानों के संदर्भ में भी इसे कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ में हम लोगों ने विभिन्न योजनाओं के नाम से अपनाया है और इसको प्रस्ताव के रूप में समिति में भी रखा है और रखेंगे।
न्यूनतम समर्थन मूल्य, उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ राइस बाउल माना जाता है देश का। 1,940 और 1,960 रुपए ये न्यूनतम समर्थन मूल्य पैडी का है। कांग्रेस ने, राहुल जी ने अपने घोषणापत्र मे ये ऐलान किया था कि किसानों को कम से कम 2,500 रुपए धान की कीमत छत्तीसगढ़ में मिलेगी। इसी तरह से गन्ने की भी 355, मक्के की भी 1,850, चने की कीमत इत्यादि। उसको सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार के लिखित निर्देशों के बावजूद कि अगर आपने किसी तरह से बोनस दिया तो हम आपका चावल नहीं उठाएंगे, केवल आपके राज्य में पीडीएस में जो चावल लगता है, उसी चावल को एफसीआई उठाएगी, बाकी चावल को नहीं उठाएगी, लिखित में सहमति बनने के बाद भी केन्द्र सरकार ने 40 लाख टन चावल जो छत्तीसगढ़ का उठाना था, उसको इंकार कर दिया था और अततः राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से धान की फसल लेने वाले उस प्रत्येक परिवार को जो केसीसी क्रेडिट कार्ड के माध्यम से क्रेडिट लेते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य के अतिरिक्त इनपुट क्रेडिट के रूप में 9,000 रुपए प्रति एकड़ अर्थात् 600 रुपए प्रति क्विंटल, अर्थात् इस साल के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,940 में 600 रुपए अगर आप जोड़ते हैं तो आज छत्तीसगढ़ के किसान को घोषणापत्र से अधिक 2,540- 2,560 रुपए धान की कीमत उपलब्ध हो रही है। इसके साथ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना का एक और हिस्सा है कि अगर आपको डायवर्सिफाई करना है, चलिए पैडी नहीं लेना है तो दूसरी फसल अगर आप, पिछले साल धान की खेती आपने की थी, दूसरी फसल अगर आप लगाते हो तो तीन साल के लिए सपोर्ट स्वरुप 10,000 रुपए प्रति एकड़ आपको उपलब्ध कराए जाएंगे।
न्याय योजना को आगे ले जाते हुए राजीव गांधी भूमिहीन किसान न्याय योजना, जिनके पास जमीन है, उनको तो आपने एकड़ के पीछे इतना दिया, जिनके पास जमीन नहीं है, उनके लिए क्या- तो 7,000 रुपए प्रति वर्ष ऐसे नागरिकों के लिए किसान भूमिहीन न्याय योजना के नाम से छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रबंधन किया है, तो इस विचार को भी समक्ष रखेंगे। इसके अतिरिक्त ऑर्गेनिक फार्मिंग की हम बात करते हैं, लेकिन उसके प्रोत्साहन के लिए देश में अभी बहुत कुछ नहीं हुआ है। ये हमारे राज्य के घोषणापत्र का हिस्सा था और उसे पूरा करने की दिशा में गोबर को हमने मॉनिटाइज किया है, 2 रुपए प्रति किलो गोबर की खरीदी 130 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि की छत्तीसगढ़ विगत वर्ष के अंदर कर चुका है औऱ ये राशि सीधे, न केवल पशुपालकों को लेकिन उन व्यक्तियों को भी जो पशुपालन नहीं करते हैं और गोबर खेत में ये सड़क में या कहीं ऐसे छूटा रहता है, उसको एकत्रित करके उनको इस राशि का लाभ भी मिल रहा है और साथ ही इस गोबर को वर्मी कंपोस्टिंग के माध्यम से प्राकृतिक खाद बनाकर, ऑर्गेनिक खाद बनाकर और खेतों में इसका उपयोग SHG के माध्यम से हो रहा है, जो प्रोसेसिंग खर्चा, गोबर की खरीदी का खर्चा काटकर जो राशि प्रॉफिट के रूप में बचती है, वो भी SHG की महिलाओं को प्रॉफिट के रूप में मिल रहा है। ये राशि भी किसान परिवार की महिलाओं को ही उपलब्ध कराने की एक पहल छत्तीसगढ़ सरकार ने कर रखी है, और सफलतापूर्वक इसको आगे ले जाया जा रहा है।
इंस्टीट्यूशनल क्रेडिट के संदर्भ में देश की जो वर्तमान स्थिति है, उसमें 80 प्रतिशत से ज्यादा राशि, बहुतायत राशि ये प्राइवेट फंडिंग के माध्यम से या तो किसान जो प्राइवेट फंडिंग है, 80 प्रतिशत से ज्यादा राशि स्वंय किसान अपने साधनों से लागत के रूप में उपलब्ध कराता है और क्रेडिट जो हमको अन्य साधनों से उपलब्ध हो रहा है, ये बहुत कम है। 3-5 प्रतिशत, 6 प्रतिशत ही मात्र पब्लिंक फंडिंग से किसान को क्रेडिट आज के दिन उपलब्ध हो रहा है, इस राशि को सीधे और बढ़ाने की आवश्यकता है, इस बाबत चिंतन चल रहा है। सब्सिडी, मैंने पहले ही सब्सिडी के बारे में आपको बताया कि केन्द्र सरकार के लिखित खाद्यान्न विभाग की डायरेक्शन के बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार ने जो कदम उठाए, सब्सिडाइजिंग के लिए अन्य माध्यमों से जो राशियां फिर भी उपलब्ध होती हैं, राज्य सरकार अपने बजट से देती है, उनमें कैसे हम डीबीटी के माध्यम से किसानों को ये सीधी राशि उपलब्ध करा सकें।
सब्सिडी के रुप में उदाहरण के लिए मानिए बिजली, आज छत्तीसगढ़ सरकार लगभग 1,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की इलेक्ट्रिसिटी सब्सिडी दे रही है, किसानों को लेकर अनकंज्यूमर्स को भी 400 यूनिट तक की बिजली हाफ, किसान का कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ। सब्सिडी के रुप में 8,800 करोड़ रुपए छत्तीसगढ़ की सरकार ने ऋण मुक्ति के माध्यम से किसानों को सब्सिडाइज किया था और वो प्रथम वर्ष में ही उस लक्ष्य को पूरा कर दिया है। इरीगेशन सेस जो लगता था, उसको भी सब्सिडाइज करने के नाते छत्तीसगढ़ सरकार ने मुक्त कर दिया है। आज छत्तीसगढ़ के किसान को इरीगेशन सेस नहीं देना पड़ता। ऐसे अन्य कदम हैं, जो राज्य की सरकार ने उठाए हैं और राष्ट्रीय स्तर पर इन नीतियों को कैसे हम सब्सिडी को लागू कर सकते हैं। आज फर्टिलाइजर पर सब्सिडी है, मैं तुलनात्मक ज्यादा जमीन पर खेती करता हूँ, सब्सिडाइज फर्टिलाइजर का लाभ मुझे मिल सकता है। लेकिन 56.25 प्रतिशत किसान ये 2015-16 की जो नेशनल कृषि कमीशन की जो रिपोर्ट है, उसके हिसाब से 56.25 किसान एक एकड़ पर भी खेती नहीं करता है, उसको सब्सिडी का कितना लाभ मिल रहा है? 79.71 किसान दो हैक्टेयर से नीचे, 5 एकड़ से नीचे की खेती देश में करता है, और साथ में जमीन का फ्रेगमेंटेशन बहुत तेजी से हो रहा है। आज एक हाउसहोल्ड, जो 1970-71 में औसतन देश में 2.28 हैक्टेयर की खेती करता था, 2015-16 की रिपोर्ट के आधार पर ये घटकर 1.08 हैक्टेयर हो गया है। प्रति व्यक्ति औसत खेती एक हाउसहोल्ड अगर देश में कर रहा है, तो 1970-71 के 2.28 की तुलना में 1.08 हैक्टेयर की ही खेती कर पा रहा है और उसमें जो सब्सिडी का स्ट्रक्चर है, उसको आपने सब्सिडी दिया स्प्रिंक्लर पर, मैं स्प्रिंक्लर का इस्तेमाल नहीं कर रहा, मेरे को क्या लाभ मिल रहा है। बहुत बड़ी राशि देश में, सब्सिडी जिस रुप में दी जा रही है, डीबीटी के माध्यम से सीधे किसान को अगर उसको उपलब्ध कराया जाए, इस पर चिंतन हो रहा है।
शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि आप काफी लंबे अर्से से हमारी बातें सुन रहे हैं, आपका धन्यवाद करता हूं और आपका स्वागत भी करता हूं।
नव संकल्प का यही है नारा, हो समृद्ध किसान हमारा।
हमने बहुत चर्चाएं की हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से आए हुए साथियों ने अपने विचार रखे। महत्व ज्यादा इसलिए दिया है क्योंकि एक कृषि प्रधान देश है हमारा और कृषि प्रधान देश में सबसे पहले जैसा हुड्डा जी ने कहा कि MSP का कानून होना चाहिए। 1965 में कांग्रेस सरकार ने MSP लागू की, पहली बार। उस वक्त पर जितना भी प्रिक्योर करते थे, वो पीडीएस में इतना ही जरुरत हो जाता था, जो बाहर से PL 480 गेहूं लाना पड़ता था, जब कांग्रेस ने शासन संभाला। उसकी जगह पर हरित क्रांति की बात करके आज देश उस हालत में है कि हमारे पास धान के भंडार हैं और वक्त आ गया है, आज वक्त आ गया है कि MSP का कंपल्सरी कानून होना चाहिए, क्योंकि बदलते वक्त में जैसे मैंने आपको कहा, ये जरुरी हुआ है। खेत मजदूर कल्याण के लिए हमने विस्तृत चर्चाएं की हैं। जैसे कि टीएस सिंह देव जी ने कहा, जहाँ हमारी सरकारें हैं, वहाँ हमने न्याय योजना के तहत डायरेक्ट उन खेत मजदूर के खाते में पैसे डाले हैं। पशु पालन के लिए भी हमने चिंताएं की हैं। जैसे 2 रुपए किलो में सरकार गोबर खरीदे, छत्तीसगढ़ ने ये शुरु किया और उस गोबर से महिलाओं की मंडलियां खाद बनाएं और वो खाद भी सरकार खरीद करें। वो हमने इस देश में जैसे अमूल का एक मॉडल कांग्रेस के शासन में गुजरात में कॉपरेटिव का बना, वही मॉडल देश में लागू करने की बात हमने की है।मैं आखिर में यही कहूंगा कि ये भाजपा चुनाव के वक्त नारा लेकर आई थी। मित्रों, किसान की आय दोगुनी करुंगा, आज हालत ये है कि आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया। ये हालत हुई है। शासक पकोड़े खाता है, जुमले देता है, किसान आहें भरता है और जहर खाता है। देश की ये हालत है, उसमें किसानों के लिए एक नए संकल्प के साथ, नई बातों को लेकर राष्ट्र के हित में हमने चिंतन किया है, आपके सामने पूरी चीजें देश के सामने हम रखेंगे। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।