अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यद्यपि कांग्रेस को शाबाशी और बधाई होनी चाहिए कई उनके अभियानों के आधार पर आज शुरुआत के स्पीक अप डेमोक्रेसी का अभियान, लेकिन फिर भी कांग्रेस अपने आप को भविष्यवाणी का एक्सपर्ट नहीं समझती, ज्योतिष शास्त्र में प्रैक्टिस नहीं करती है, उसके बावजूद आज 26 तारीख को #SpeakUpForDemocracy का अभियान शुरु हो रहा है आपके समक्ष कांग्रेस द्वारा, उससे ज्यादा उपयुक्त आज के भारत में ना संदर्भ था, इस थीम से ज्यादा उपयुक्त, इस विषय से ज्यादा उपयुक्त, ना संदर्भ था, ना हमारे आस-पास जो चीजें, घटनाएँ हो रही हैं, उससे ज्यादा उपयुक्त हम थीम उठा सकते थे, इसलिए इस बात के लिए मैं बिना ज्योतिष शास्त्र में निपुणता के बधाई दूँगा कांग्रेस को।
मैं तीन संवैधानिक पोस्ट, पोजिशन, पदाधिकारियों के बारे में बात करुंगा, मुख्य रुप से राज्यपाल,राज्यपाल और संक्षेप में केन्द्र सरकार के सबसे वरिष्ठ नेता, हमारे प्रधानमंत्री और न्यायपालिका भी। लेकिन मुख्य रुप से ये बात गवर्नर के विषय में है। शुरु करने से पहले मैं अपने वक्तव्य को संक्षिप्त में 5 प्रश्नों में बाँटना चाहता हूं और फिर उन 5 प्रश्नों को जवाब आपको जल्द मिलेगा। पहला, क्या, आप सब कानून छोड़ दीजिए, राजनीति छोड़ दीजिए, सामाजिक ज्ञान छोड़ दीजिए, आप आम ज्ञान जिसे कहते हैं, कॉमन सेंस, तथ्यों के आधार पर जो समझ होती है, ज्ञान को भूल जाइए, क्या आप समझते हैं कि कोई भी गवर्नर कभी भी, इस गवर्नर या मैं राजस्थान की बात नहीं कर रहा है, विलंब करेगा, मनाही करेगा असेंबली के सत्र को बुलाने में? कौन सा कारण सोच सकते हैं, संदर्भ सोच सकते हैं जब गवर्नर विलंब, सीधा मनाही तो करते नहीं कोई भी, करेगा कि असेंबली को कन्वीन (convene) किया जाए, बुलाया जाए, नोटिस दिया जाए।
दूसरा, इसका उत्तर पारदर्शी है, स्पष्ट है, आप भी जानते हैं, मैं भी जानता हूं। लेकिन इस उत्तर से क्य़ा य़े प्रमाणित नहीं हो जाता कि किसके पास नंबर हैं, किसके पास नहीं हैं? कौन भय से भाग रहा है, कौन नहीं भाग रहा है, कौन अवोयड़ कर रहा है नंबरों की कांउटिग, कौन नहीं कर रहा है? कौन संविधान को तोड-फौड़ कर, मचौड़ कर, गैर कानूनी सहायता लेकर संवैधानिक पदाधिकारों से संविधान के आदेश से, उसकी स्पीरिट को फोलो नहीं कर रहा है? इस मनाही से, इस विलंब से पूरी बात प्रमाणित हो जाती है।
तीसरा, गवर्नर महोदय ने उस चिट्ठी में भी लिखा था, जो प्रेस रिलीज़ में भी दी गई है कि हजारों-सैंकड़ों बहुत ही प्रसिद्ध-सुप्रसिद्ध स्पेशल सलाहकारों से बातचीत चल रही है, उसके बाद हम जवाब देंगे। तो मैं पूछना चाहता हूं कि क्या इन सलाहकारों को संज्ञान नहीं है य़ा ज्ञान नहीं है इस बात का 70 वर्ष बाद कि हमारे संविधान की जो असेंबली थी, कॉन्सिट्यूशन बनाने वाले निर्माताओं की, जो हमारे सबसे शीर्षस्थ नेतृत्व थे, उसके बाद के 70 वर्ष के उच्चतम न्यायालय के निर्णय सरकारी य़ा कमीशन जैसे दस्तावेज इनका ज्ञान है कि नहीं है और क्या इनमें राज्यपाल के सही रोल, उसके पद, उसकी गरिमा, उसका अधिकार क्षेत्र स्पष्ट किए गए हैं कि नहीं? लगता नहीं मुझे कि उनको इसका संज्ञान या इसका कोई आइडिया भी है।
नंबर चार, जो सबसे शीर्षस्थ स्थान पर कार्यपालिका के बैठे हैं माननीय प्रधानमंत्री, दूसरों के लिए जिन्होंने ऐसे शब्दों को ईजाद किया, ‘मौनी बाबा’, आज क्या वो अपने मौन से ये नहीं पूछना चाहते माननीय राज्यपाल को, उस मौन व्रत को तोड़ कर कि आप अपना राजधर्म का अनुपालन करिए या इतने मुखर-प्रखर, इतने जबरदस्त वक्ता हमारे प्रधानमंत्री, वो सब सब चीजें रिजर्व करते हैं सिर्फ जुमलों के लिए? राजधर्म के संज्ञान को, राज्यपाल को देने के लिए नहीं? सीधे वो इसमें विलंब में शामिल हैं, इसलिए ये हो रहा है।, गणतांत्रिक, लोकतांत्रिक सिद्धांतों के हनन में, उनकी हत्या में, इसलिए ये हो रहा है। अंतिम प्रश्न कि न्यायपालिका जो उच्च न्याय लेती है, क्या किसी भी सिचुएशन में उसको उच्चतम न्यायालय का निर्णय फोलो करने के लिए बाध्य है या नहीं और क्या उसने 24 जुलाई वाले अपने आंतरिक आदेश 30 वर्ष से बाध्य 5 जजिस का निर्णय किहोटो होलोहन (Kihoto Hollohon) का अनुपालन किया गया।
ये 5 प्रश्न हैं, लेकिन मैं शुरु करुंगा आपको याद दिलाकर। मेरा मानना है कि हमारे संविधान निर्माताओं से ज्यादा दूरदर्शिता, समझ, एक संतुलन शायद किसी ने कभी इतिहास में, हमारे ही देश में नहीं और देशों में भी नहीं कहीं दिखाया होगा। उस शीर्षस्थ नेतृत्व में कई नाम मैंने आपको कोट किए, दस्तावेज मैं दूगा, सरदार हुकम सिंह से लेकर और सुप्रसिद्ध लोग, पर अंबेडकर साहब, बाबा साहब
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