अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला का बयान:देश की राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन की आड़ में हुई सुनियोजित हिंसा व अराजकता के लिए सीधे-सीधे गृहमंत्री,अमित शाह जिम्मेदार हैं। इस संबंध में तमाम खुफिया इनपुट के बावजूद हिंसा के तांडव को रोक पाने में नाकामी के चलते उन्हें एक पल भी अपने पद पर बने रहने का हक नहीं है। साल भर के भीतर दूसरी बार हुई इस हिंसा को रोक पाने में बुरी तरह विफल रहने वाले,अमित शाह को उनके पद से फौरन बर्खास्त किया जाना चाहिए। यदि प्रधानमंत्री अब भी उन्हें बर्खास्त नहीं करते तो इसका मतलब साफ है कि उनकी अमित शाह से प्रत्यक्ष मिलीभगत है।
आज़ादी के 73 सालों में यह पहला मौका है, जब कोई सरकार लाल किले जैसी राष्ट्रीय धरोहर की सुरक्षा करने में बुरी तरह नाकाम रही। किसानों के नाम पर साज़िश के तहत चंद उपद्रवियों को लाल किले में घुसने दिया गया और दिल्ली पुलिस कुर्सियों पर बैठी आराम फरमाती रही। भाजपा के करीबी और मोदी-शाह के चेले, दीप सिद्धू की पूरे समय लाल किले में मौजूदगी किसान आंदोलन को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश है। और अब स्थिति ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’ वाली है। दिल्ली में उपद्रव रोकने में बुरी तरह नाकाम ग्रहमंत्री,अमित शाह के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने उपद्रवियों की अगुआई कर रहे दीप सिद्धू व उनके गैंग की बजाय संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज करके उपद्रवियों के साथ भाजपा सरकार की मिलीभगत व साजिश को खुद ही बेनकाब कर दिया है।
बीते 63 दिनों से लाखों अन्नदाता दिल्ली के दरवाजे पर तीनों काले कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्वक अपना आंदोलन कर रहे हैं। मोदी सरकार ने उन्हें रोकने के लिए आंसू गैस के गोले, वाटर कैनन, बर्बर लाठी चार्ज तक किया, मगर उन्होंने उफ नहीं किया और शांतिपूर्वक अपना आंदोलन करते रहे। मगर मोदी सरकार जब उन्हें ‘बलपूर्वक’ नहीं हटा पाई, तो छलपूर्वक हटाने का षडयंत्र करने लगी। पहले ‘प्रताड़ित करो और परास्त करो’ की नीति, फिर मीटिंग पर मीटिंग कर ‘थका दो और भगा दो’ की नीति, फिर किसानों में ‘फूट डालो और आंदोलन तोड़ो’ की नीति और अब अंतिम छल है, अराजकता का आरोप लगा ‘बदनाम करो और बाहर करो’ की नीति।
o सवाल यह है कि जो किसान 63 दिन से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, अचानक से ऐसा क्या हुआ, जो वो इतना बिफर गए?
o अगर सरकार 10 दौर की बातचीत करने का ड्रामा करे, किसानों की समस्या के समाधान की बजाय व्यवधान का षडयंत्र करे और किसान आंदोलन को बदनाम करने पर जोर रखे, तो सरकार की साज़िश साफ है।
o हमारा सीधा सवाल है कि केवल 30 से 40 ट्रैक्टर लेकर उपद्रवी लाल किले में कैसे घुस पाए?
o यह किसकी असफलता है? इसका जिम्मेदार कौन है?
o लाल किला तो हमारी आजादी का प्रतीक है। किसानों और गरीबों के लिए सर्वमान्य है, तो 500-700 हिंसक तत्व जबरदस्ती लाल किले में कैसे घुस सकते हैं? जो दीप सिद्धू प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचवा बैठक साझा करता है, उसे और उसके समर्थकों को लाल किले तक जाने की अनुमति किसने दी?
o चाहे परिस्थिति कोई भी हो, मोदी सरकार को यह बताना पड़ेगा कि इतनी आसानी से कोई भी हिंसक समूह लाल किले तक कैसे पहुंच सकता है? लाल किले की प्राचीर पर चढ़कर झंडा कैसे लगा सकता है? क्या यह साफ नहीं दिखा कि पुलिस बैठकर तमाशा देख रही थी और टीवी कैमरों का मुंह लाल किले की प्राचीर की तरफ था?
o किसानों के मुताबिक कल तक 178 से अधिक किसान इस आंदोलन में दम तोड़ गए। किसानों को हिंसा ही करनी होती तो वो 63 दिन से हाड़ कंपकपाती सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर लाखों की संख्या में क्यों बैठते?
o कल से सारे न्यूज़ चैनलों ने किसान नेताओं और दूसरे लोगों से तो बहुत सारे सवाल पूछे, पर गृहमंत्री, श्री अमित शाह से इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेने के लिए क्यों नहीं कहा?
o क्या हिंसा का वातावरण बना यह सब किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश नहीं? क्या यह दिल्ली दंगों, शाहीन बाग, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों, जेएनयू दिल्ली विश्वविद्यालय प्रकरण की पुनरावृत्ति तो नहीं?
o क्या मोदी सरकार, श्री अमित शाह और प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं? किसान आंदोलन में अगर जबरन कोई हिंसक तत्व षडयंत्रकारी मनसूबे से घुसे थे, तो गुप्तचर एजेंसियों से लेकर गृह मंत्रालय तक क्या कर रहा था? यह विफलता किसान नेताओं की है या मोदी सरकार और प्रशासन की? क्या इसके लिए गृहमंत्री सीधे जिम्मेदार नहीं?
o कल जो हुआ उससे किसको फायदा और किसे नुकसान हुआ? किसानों को मिलते जन समर्थन को विरोध में बदलना कौन चाहता था और ऐसी कोशिश कौन कर रहा था?
सरकार प्रायोजित भड़काऊ बयानों, वीडियो, संदेशों आदि से उत्तेजित होने से पहले देश इन सवालों के उत्तर चाहता है।
कल जो हुआ वह पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से किया गया काम है। पर यह योजना किसानों की नहीं बल्कि आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है, जिसे सीधे सीधे मोदी सरकार का समर्थन और संरक्षण है।
किसान – मजदूर – गरीब न हिंसा चाहता और न ही तोड़फोड़। किसान – मजदूर न गतिरोध पैदा करना चाहता और न ही रास्ता रोकना चाहता। किसान
– मजदूर तो अन्नदाता भी है और देश के जवान का पिता और भाई भी – वो देश की खाद्य सुरक्षा भी करना चाहता है और सीमा की सुरक्षा भी। इसलिए हमारी अपील है कि मोदी सरकार किसान आंदोलन को बदनाम करने की बजाय मांगों के समाधान पर जोर दे। बगैर देरी के तीनों खेती विरोधी काले कानून वापस ले, ताकि किसान-मजदूर अपने खेत खलिहान में सोना पैदा कर पूरे देश का पेट पाल सके। यही राजधर्म है, यही देशभक्ति और यही राष्ट्रप्रेम।
जय किसान – जय जवान!