नई दिल्ली/ अजीत सिन्हा
रणदीप सिंह सुरजेवाला, महासचिव, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बयान:मोदी सरकार भी कपटी बगुले की तरह है जिसका तन उजला और मन मैला है। पौराणिक कथाओं में ही सुना था कि असुरों और दैत्यों की सत्ता ने देवताओं को सताया,मगर आज स्वयं धरती का भगवान अन्नदाता किसान बीते 100 दिनों से अहंकारी सत्ता द्वारा सताया जा रहा है। भाजपाई सत्ता ने इन बीते सौ दिनों में किसानों के साथ क्रूरता, निर्दयता और बर्बरता की सारी हदें लाँघ दी हैं। किसानों पर कड़कड़ाती ठंड में पानी की बौछारों से प्रहार किया गया, रास्ते खोदे गए, लाठी भाँजी गईं, आँसू गैस के गोले दागे गए। इतना ही नहीं, आतंकवाद के कानूनों के तहत फ़ँसाने की कोशिशें तक की गईं तथा उनकी राहों में कील और काँटे तक बिछाए गए।
आइये जानते हैं इन सौ दिनों में धरती के भगवान – किसान मजदूर ने क्या क्या सहा हैः
1) काली कोठरी वालों के काले कानून:-
सबसे पहले पूँजीपतियों की पल्वित, पुष्पित, पोषित, पाली पोसी भाजपाई सत्ता ने महामारी की विभीषिका की काली अंधियारी रात में अन्नदाता किसानों के खिलाफ़ जून 2020 में तीन काले क्रूर कानूनों के अध्यादेश पूँजीपतियों के हित साधने के लिए पास किए।
किसानों और प्रतिपक्ष के लाख़ विरोध के बावज़ूद इन अध्यादेशों को सदन में कानूनी मर्यादाओं को ताक में रखकर पास किया गया।
इतना ही नहीं, सरकार द्वारा सर्वाेच्च अदालत में झूठा शपथपत्र भी दिया गया कि प्रभावित पक्षों से चर्चा कर के ये कानून लाया गया है। जबकि सूचना के अधिकार के तहत सरकार ने यह स्वीकारा कि वर्तमान में इन क्रूर काले कानूनों को बनाने से पहले किसानों से बात नहीं की गई।
2) अहंकारी सत्ता – आंदोलित किसान
किसानों ने हरसंभव कोशिश की कि वे आंदोलन की राह की अपेक्षा वार्ता से मोदी जी की मनमानी का समाधान निकालें इसलिए दिल्ली कूच करने से पहले 13 नवंबर, 2020 को किसानों ने देश के कृषि मंत्री से 7 घंटे चर्चा की, मगर ‘हम दो हमारे दो’ की नीति पर चलने वाली सरकार किसानों की कहाँ सुनने वाली थी ।
अंततः किसान 26 नवंबर, 2020 को दिल्ली कूच करने को मजबूर हुए। वे गाँधीवादी तरीके से अपनी बात रखना चाहते थे मगर निर्दयी मोदी सरकार ने किसानों के जत्थों को घेर कर सोनीपत के बॉर्डर पर, सिंधु और टीकरी बॉर्डर पर, सिरसा, जींद, फतेहाबाद, दिल्ली की लगभग सभी सीमाओं पर कड़कड़ाती ठंड में पानी की बौछारों से आँसू गैस के गोलों से प्रहार प्रारंभ किए, बर्बरता से लाठियों डंडों से मारा गया। यहाँ तक कि नेशनल हाइवे खोदे गए।
मगर किसानों के फौलादी इरादों के आगे सत्ता की प्रताड़ना परास्त हुई और किसानों ने दिल्ली के दरवाजे पर धरना प्रारंभ किया।
3) मीटिंगों का स्वाँग – नहीं मानी माँग
चंद पूँजीपतियों से किसानों की आजीविका का सौदा पहले ही कर चुकी अधर्मी मोदी सरकार ने किसानों की माँगों के समाधान का स्वाँग करना प्रारंभ किया। किसानों से पहली बैठक 14 अक्टूबर को आयोजित की गई मगर मगरूर सरकार का कोई मंत्री इस मीटिंग में नहीं आया, सिर्फ कृषि सचिव मौजूद थे। स्वाभाविक था किसानों ने चर्चा से साफ़ इंकार कर दिया। फिर 13 नवंबर से कृषि मंत्री से बैठकों का दौर चालू हुआ। पहले दिन से सरकार के मन में खोट था। सरकार समाधान नहीं चाहती थी। एक के बाद एक मीटिंगों पर मीटिंग बुलाई गई। 13, नवंबर, 1, 3, 5, 8, 30 दिसंबर, 8 जनवरी से लेकर 22 जनवरी तक कुल 12 बैठकों के दौरान सरकार ने किसानों को परास्त करने की 3 रणनीतियों पर काम किया।
(A) थका दो – भगा दो – सरकार चाहती थी कि इतने लंबे समय तक बैठकें की जाएँ कि किसानों के संसाधन ख़त्म हो जाएँ और किसान थक कर भाग जाएँ।
(B) प्रताड़ित करो – परास्त करो की नीति के अनुरूप इसी दौरान किसानों को अलग अलग तरह से प्रताड़ित किया गया। कभी इन्कम टैक्स के छापे, कभी छप्। के नोटिस दिये गए। उत्तर प्रदेश में 50 – 50 लाख़ के नोटिस दिए गए। मध्यप्रदेश में वन विभाग के छापे डलवाकर फ़र्जी मुक़दमे लगवाए गए। इतना ही नहीं, किसानों के आँदोलन पर पथराव तक किया गया। उनकी राहों में कील और काँटे बिछाए गए ।
(C) बदनाम करो – आँदोलन तोड़ो की नीतिः मोदी सरकार के प्रभावशाली नेताओं मंत्रियों ने किसानों को सार्वजनिक रूप से पाकिस्तानी, खालिस्तानी, माओवादी तक कहा। आँदोलन में विदेशी फंडिंग के आरोप लगाए गए। 26 जनवरी की ट्रेक्टर रैली में तो सरकार प्रायोजित कार्यक्रम के तहत नियोजित रूप से लाल किले की प्राचीर से भारत की अस्मिता को तार तार किया गया और उसका आरोप किसान भाइयों पर मढ़ने की कोशिश की गई ताकि किसानों के आँदोलन की छवि धूमिल की जा सके।
4) ‘कवरेज एरिया’ से बाहर किया, ‘एक कॉल दूर’ का झांसा दियाः
मोदी सरकार हमेशा अपने पूँजीपति मित्रों के ‘कवरेज एरिया’ में रहती है, किसानों को ‘आउट ऑफ कवरेज’ एरिया किए रहती है और किसानों को ‘एक काल दूर’ का झाँसा देती है। मोदी जी भली भाँति जानते हैं कि इन काले कृषि विरोधी क्रूर कानूनों के क्या दुष्प्रभाव किसानों पर पड़ने वाले हैं। सरकारी मंडियाँ बंद हो जाएंगी, समर्थन मूल्य पर खरीदी बंद हो जाएगी, जमाख़ोर असीमित मात्रा में अनाज जमा करके बाज़ार में फसलों के दाम तोड़ देंगे, किसानों की ज़मीनें हड़पी जाएंगी, मगर वे तो चाहते ही ये हैं कि 14 करोड़ 65 लाख़ किसानों से उनकी आजीविका छीनकर 25 लाख़ करोड़ का खेती का व्यापार अपने पूँजीपति मित्रों को दे दें।
अंततः पाँचों राज्यों में भाजपा की हार से निकलेगा किसानों की जीत का रास्ताः
मोदी सरकार अपने बहुमत के अहंकार में अंधी हो गई है। उसे सत्ता के स्वार्थ के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है। प्रजातंत्र ‘मनमाने’ नहीं ‘जनमाने’ तरीके से चलाया जाता है।
इन पाँचों राज्यों में मोदी सरकार की पराजय किसानों की निजी क्षेत्र में समर्थन मूल्य दिए जाने और किसान विरोधी काले कानूनों को वापस लिए जाने की जीत का रास्ता खोलेगी ।
आइये ,‘भाजपा की हार’ और ‘देश की जीत’ का मार्ग प्रशस्त करें।