अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सबको मेरा नमस्कार। आने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और आशा करती हूं कि आप सब लोग सुरक्षित रह रहे होंगे कोविड के दौरान। इसी मंच से मेरे सहयोगी और सहकर्मी प्रो. गौरव वल्लभ ने हफ्ते पहले ऑक्सफैम की रिपोर्ट पर एक प्रेस वार्ता की थी और आज एक और रिपोर्ट आई है, आईसीई 360 सर्वे 2021 (ICE 360o) का, जिसको पिपुल रिसर्च ऑन इंडियास कंज्यूमर इकॉनमी ने किया है और ये दोनों ही रिपोर्ट एक बात बताती हैं कि इस देश में गरीब और गरीब होता जा रहा है, अमीर और अमीर होता जा रहा है और ये खाई इतनी बढ़ रही है कि ये भयावह स्थिति पैदा कर रही है। मैं इस रिपोर्ट के बारे में पहले बात करुंगी और ये किन कारणों से ऐसा हो रहा है, उसके बारे में भी हम चर्चा करेंगे।
सबसे पहले तो इस रिपोर्ट के मुताबिक आज इस देश की 20 प्रतिशत सबसे गरीब आबादी, मोटा-मोटा 15 करोड़ परिवारों की आय पिछले साल 53 प्रतिशत कम हो गई है और ये कम नहीं हुई है, 53 प्रतिशत आय पर मोदी सरकार ने सेंध लगाई है। ये 20 प्रतिशत सबसे गरीब आबादी, 15 करोड़ परिवार मोटा-मोटा की आबादी पर मोदी सरकार ने, सूट-बूट की सरकार ने सेंध लगाई है। ये 7 साल पहले भी सूट-बूट की सरकार थी और आज भी सूट-बूट की सरकार है और हम सबसे गरीब परिवारों की बात नहीं कर रहे हैं, इसमें जो लोअर-मिडिल कैटेगरी है, उसकी आय करीब-करीब 32 प्रतिशत कम हुई है, जो मिडिल इंकम कैटेगरी है, उसकी आय 9 प्रतिशत कम हुई है। तो मोटे तौर पर 60 प्रतिशत घरों की, 60 प्रतिशत जनता की आय पर मोदी सरकार ने डाका डालने का काम किया है और ये आय निरंतर कम होती जा रही है, इनके शासनकाल में। इसी दौरान महत्वपूर्ण है ये समझना। इसी दौरान सबसे अमीरों की आय 40 प्रतिशत बढ़ी है और कुछ भी कहने से पहले मैं एक फिगर आपके सामने जरुर रखना चाहती हूं। 2005 से 2015 के बीच, वस्तुत: जो यूपीए का शासन काल था, उसमें 20 प्रतिशत जो सबसे गरीब हाउसहोल्ड थे, जो सबसे गरीब परिवार थे, उनकी आय 183 प्रतिशत बढ़ी थी। तो एक शासनकाल में 183 प्रतिशत बढ़ी है और एक शासनकाल में आय आधी हो गई है, 53 प्रतिशत होना, मतलब पांच साल में आय आधी हो गई है और ये क्यों हुआ है, क्योंकि सूट-बूट की सरकार अमीरों से प्यार करती है और गरीबों पर अत्याचार करती है। सूट-बूट की सरकार की नीतियां, उनके नियम, उनके कानून, उनकी अर्थव्यवस्था पूंजीपतियों के लिए चलती है, उनका गरीबों से, मिडिल क्लास से, लोअर मिडिल क्लास से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ पर एक बात बतानी और भी जरुरी है, जब मैंने कहा 2005 से 2015 के बीच में 183 प्रतिशत बढ़ी इंकम, उसी दौरान 27 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से निकाले गए थे और ये सारे सरकारी आंकड़ों की मैं बात कर रही हूं।
यहाँ पर ये भी कहना जरुरी होगा कि न्यू इंडिया में गरीबों को और गुरबत में धकेला जाएगा और अमीरों के हाथ में और पैसा, और संसाधन और पावर दिया जाएगा। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में दिखाया था कि कैसे कुछ लोगों की आय 8 गुना हो गई और एक बात मैं यहाँ पर बताना चाहती हूं कि सरकार कोविड के पीछे, सरकार कोरोना के पीछे नहीं छुप सकती है, क्योंकि कोरोना और कोविड तो अमीरों के लिए भी था। लेकिन उनकी आय 40 प्रतिशत बढ़ती है और सबसे गरीब लोगों की आय अधिया जाती है, आधी हो जाती है। ये इसलिए था क्योंकि सरकार की जो नीति, नियम, कानून अर्थव्यवस्था को चलाने का तरीका है, वो अमीरों के लिए होता है। पिछले पांच सालों में जब हमने ये फर्क देखा कि कैसे उनकी आय आधी हो गई, उस दौरान सरकार ने क्या किया – पेट्रोल के दाम बढ़े, डीजल के दाम बढ़े, रसोई गैस के दाम बढ़े, लेकिन कॉर्पोरेट टैक्स कम हुआ। तो मोटे तौर पर 15 करोड़ सबसे गरीब परिवारों से, हर एक परिवार से, 15 करोड़ सबसे गरीब हर एक परिवार से सरकार ने डेढ़ लाख रुपए एंठ कर 5 करोड़ सबसे अमीर परिवारों को देने का काम किया। ये मोटा-मोटा एक फॉर्मुला बनता है। अगर 40 प्रतिशत, 20 प्रतिशत की बढ़ रही है और 53 प्रतिशत, आधी हो रही है, सबसे नीचे वाले 20 प्रतिशत की, तो उन्होंने सबसे गरीब परिवारों से डेढ़ लाख रुपए लेकर सबसे अमीर परिवारों को देने का काम किया और ये क्यों हुआ, क्या ये गलती से हो गया – बिल्कुल नहीं। क्या कोरोना काल के पीछे छुपा जा सकता है – बिल्कुल नहीं, क्योंकि कोरोना के पहले ही अर्थव्यवस्था को जिस तरह से चलाया जा रहा था, उसके चलते हमारी जीडीपी की ग्रोथ की जो दर थी, वो 8.2 से 4.1 प्रतिशत हो गई थी। 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हो गई थी और ये सब दिख रहा है।
जब गरीब और गरीब हो रहा है, अमीर और अमीर हो रहा है, तो वो कहाँ हो रहा है, ये भी जानना जरुरी है, और ये आंकड़ा बहुत जरुरी है जानना, क्योंकि जो सबसे ज्यादा गरीबी बढ़ी है, जो 20 प्रतिशत सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, वो ज्यादातर शहरी इलाकों में हुआ है। अर्बन पॉवर्टी जिसे कहते हैं, वो बहुत जोरों से बढ़ी है, रुरल पॉवर्टी उसके मुकाबले में कम बढ़ी है और इसका सिर्फ एक कारण है – जिस मनरेगा को मोदी जी हमारी विफलताओं का प्रमाण कहते थे, वो संजीवनी साबित हुआ, उसने रुरल एरिया में, ग्रामीण क्षेत्रों में संजीवनी का काम किया, लोगों के हाथ में पैसा दिया और उससे लोगों की अर्थव्यवस्था थोड़ी बहुत चलती रही। ग्रामीण क्षेत्रों में वो हुआ, लेकिन शहरी क्षेत्रों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है और इसीलिए न्याय जैसी योजना की आज जरुरत है। हम लगातार कह रहे हैं, जिस दिन से पैंडेमिक शुरु हुआ है, उसी दिन से हम लगातार कह रहे हैं, न्याय जैसी व्यवस्था की जरुरत है, जहाँ पर गरीब लोग, जो प्रभावित हैं, उस अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से नष्ट होन के कारण, उनके हाथ मैं पैसा डाला जा सके, उनका उपभोग बढ़े, उनका निवेश बढ़े। लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती है और आज ये बात इसलिए जरुरी है, क्योंकि बजट में अब कुछ ही दिन रह गए हैं। आज से 6 से 7 ही दिन बजट में रह गए हैं और इस बजट का एक ही और सिर्फ एक केन्द्र बिंदु होना चाहिए। इस बजट का केन्द्र बिंदु होना चाहिए, इस बजट का सिर्फ और सिर्फ एक फोकस बिंदु होना चाहिए – अमीरों और गरीबों के बीच में बढ़ती हुई इस खाई को पाटना, लोगों के हाथ में पैसा देना, लोगों को, गरीबों के लिए नीतियां, नियम और कानून बनाना। इसके अलावा बाकी जो बजट होगा, वो तो जुबानी जमाखर्च की बात है।
मैं ये भी कहना चाहती हूं, क्योंकि सरकार को सर्वे में बड़ा भरोसा है। एक सर्वे और हम इस मंच से कहते हैं कि एक नया सर्वे इंस्टीट्यूट करिए – ग्रॉस इकॉनमिक मिसमैनेजमेंट इंडेक्स, ये एक नया इंडेक्स मोदी सरकार को बनाना चाहिए। ग्रॉस इकॉनमिक मिसमैनेजमेंट इंडेक्स, इस इंडेक्स के चलते पता तो चले कि ये सरकार बेरोजगारों के साथ, गरीबों के साथ क्या कर रही है। किस तरह से इकॉनमिक ग्रोथ को अधिया दिया गया। किस तरह से निवेश खत्म हो गया, किस तरह से उपभोग प्रभावित हुआ। किस तरह से निर्यात खत्म हुआ इस इकॉनमी में, ये अगर पता करना है, तो मोदी जी के नीति, नियम और कानून देखने है, जो अमीरों के लिए बनते हैं और गरीबों का उसमें शोषण होता है।मैं इस मंच से एक बात ये भी कहना चाहती हूं और ये जरुरी बात है कहने के लिए कि हम पहली बार जो टेक्निकल रिसेशन में गए, हमने जिस तरह से रोजगार नष्ट होते हुए देखे। इस रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर रोजगार छोटे, मध्यम, लघु उद्योगों के द्वारा पैदा किए जाते हैं और राहुल जी लगातार कहते ये हैं कि ऐसे जो उद्योग होते हैं, वो किसी भी इकॉनमी की रीढ़ की हड्डी होते हैं। उनका नष्ट होना, उनका क्षतिग्रस्त होना, इकॉनमिक बदहाली का कारण बनता है। तो इस मंच से हम दो चीजें कहना चाहते हैं। बजट आने वाला है। इस बजट का एक ही केन्द्र बिंदु होना चाहिए कि आप गरीबों और अमीरों की खाई को पाटिए, गरीबों के हाथ में पैसा दीजिए। जो शहरी गरीबी बढ़ती जा रही है, जो शहरी गुरबत बढ़ रही है, उसके बारे में कुछ कीजिए। सबसे पहले तो समस्या का समाधान ढूंढने के लिए, आपको समस्या का निवारण करने के लिए समस्या को एक्सेप्ट करना, उसको स्वीकार करना जरुरी है, लेकिन ये सरकार समस्या को स्वीकार ही नहीं करना चाहती है। जरा सी ग्रोथ आती है, आप साढ़े सात फीट अंदर चले गए थे जमीन के, अगर आप आठ फीट ऊपर भी आ रहे हैं, तो आप आधा फीट ही ऊपर आए हैं, उस पर तालियां होने लगती हैं, एक-दूसरे की पीठ ठोकने लगते हैं। तो जरुरी है समझना कि गरीबों की सुरक्षा की जाए, अमीरों के हाथ में, जो सबसे गरीब परिवारों से डेढ़-डेढ़ लाख रुपए लेकर आपने प्रत्येक परिवार के डाले हैं, उस व्यवस्था को खत्म कीजिए। सूट-बूट की जो सरकार आप पिछले 8 सालों से चला रहे हैं और आपने बदहाली के इस आलम पर ला दिया है कि आज इस देश की 20 प्रतिशत की आबादी की आय आधी हो गई है और 60 प्रतिशत आबादी की आय पांच साल में सबसे ज्यादा कम हो गई है, उसके बारे में निवारण कीजिए।