अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:राहुल गांधी ने लोकसभा में सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि स्पीकर सर, आपने मुझे सदन में बोलने का मौका दिया,इसका मैं बहुत-बहुत आभारी हूं। धन्यवाद। कल प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में विपक्ष के बारे में बोला था कि विपक्ष आंदोलन की बात कर रहा है, मगर जो कृषि कानून हैं, उनके ‘कंटेन्ट’ के बारे में और उनके इंटेन्ट के बारे में विपक्ष नहीं बोल रहा है।तो मैंने सोचा आज प्रधानमंत्री जी को खुश करें, खुश करें और जो तीन किसान के बिल हैं, खेती के बिल हैं, उनके कंटेन्ट का और इंटेन्ट की बात करें। सत्ता पक्ष द्वारा टोका-टोकी पर राहुल गांधी ने कहा- किसान का मुद्दा भी बजट का मुद्दा है, आप उनका आदर कीजिए।
तो पहले कानून का कंटेन्ट क्या है – पहले कानून का कंटेन्ट है कि कोई भी व्यक्ति देश में कहीं से भी, कितना भी अनाज, सब्जी, फल खरीद सकता है। जितना भी खरीदना चाहता है, खरीद सकता है, तो अगर कहीं से खरीदी- अनलिमिटेड खरीदी होगी, तो मंडी में कौन जाएगा? मंडी में कौन जाकर खरीदेगा, तो पहले कानून का कंटेन्ट मंडी को खत्म करने का है। इसका लक्ष्य मंडी को खत्म करने का है।
दूसरे कानून का कंटेन्ट क्या है- कि बड़े से बड़े उद्योगपति जितना भी अनाज, जितना भी फल, जितनी भी सब्जी स्टोर करना चाहते हैं, वो स्टोर कर सकते हैं। कोई लिमिट नहीं, जितना वो होल्ड करना चाहते हैं, वो कर सकते हैं। दूसरे कानून का कंटेन्ट – एसेंशियल कमोडिटी एक्ट को खत्म करने का। दूसरे कानून का कंटेन्ट जमाखोरी को अनलिमिटेड तरीके से हिंदुस्तान में चालू करने का है।
तीसरे कानून का कंटेन्ट – जब एक किसान हिंदुस्तान के सबसे बड़े उद्योगपति के सामने जाकर अपने अनाज के लिए, अपनी सब्जी के लिए, अपने फल के लिए सही दाम मांगे, तो उसे अदालत में नहीं जाने दिया जाएगा, यह है तीसरे कानून का कंटेन्ट।
आपको याद होगा, स्पीकर सर, सालों पहले, फैमिली प्लानिंग का एक नारा था- आपको याद होगा, ‘हम दो – हमारे दो’। अब मैं इंटेन्ट की बात कर रहा हूं, कानून के इंटेन्ट की बात। आज क्या हो रहा है – जैसे कोरोना दूसरे रुप में आता है, वैसे ही ये नारा दूसरे रुप में आया है। आज इस देश को चार लोग चलाते हैं। चार लोग चलाते हैं – हम दो और हमारे दो। नाम सब जानते हैं हम दो हमारे दो। ये किसकी सरकार है -हम दो – हमारे दो की। तो पहले कानून का इंटेन्ट बताता हूं कि – पहले कानून का इंटेन्ट कि हमारे दो मित्रों में से एक जो सबसे बड़ा मित्र है, उसको पूरे हिंदुस्तान के अनाज, फल और सब्जी को बेचने का अधिकार, ये है पहले कानून का इंटेन्ट। नुकसान किसका होगा- नुकसान ठेले वालों का होगा, नुकसान छोटे व्यापारियों का होगा, नुकसान जो लोग मंडी में काम करते हैं, लाखों लोग, उनका होगा।
अब चलिए दूसरे कानून के इंटेन्ट की बात करते हैं। दूसरे कानून का इंटेन्ट दूसरे मित्र की मदद करने का है। दूसरे मित्र को पूरे देश में अनाज, फल और सब्जी की स्टोरेज (भंडारण) की मनोपली (monopoly) दी जाएगी। आज दूसरा मित्र 40 प्रतिशत हिंदुस्तान का अनाज अपने साइलोज में रखता है। 60-70 प्रतिशत अनाज, फल, सब्जी अपने साइलोज में रखेगा। प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैंने ऑप्शन दिया है। हाँ, आपने ऑप्शन दिया है, तीन ऑप्शन दिए हैं। पहला ऑप्शन – भूख। दूसरा ऑप्शन –बेरोजगारी। तीसरा ऑप्शन – आत्महत्या। ये तीन ऑप्शन आपने दिए हैं। अब देखिए मामला क्या है, मामला ये है कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा बिजनेस, सबसे बड़ा व्यापार एग्रीकल्चर का है। 40 प्रतिशत आबादी इससे जीती है। 40 लाख करोड़ रुपए का धंधा है। इसमें किसानों को फायदा मिलता है।
तो दूसरे कानून का इंटेन्ट है कि एक व्यक्ति को आप पूरे देश की अनाज की स्टोरेज की मनोपली दे दो और जब किसान अपने अनाज के लिए सही दाम मांगने जाएगा, तो जिसके पास स्टोरेज की मनोपली होगी, वो मार्केट में अनाज डालेगा और किसान से कम से कम पैसे में खरीद करेगा और जब वही किसान कंज्यूमर बनकर अपना ही माल खरीदने जाएगा, तो वही व्यक्ति अपने गोदाम से अनाज बेचेगा, तो किसान को और ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे। इन कानूनों का लक्ष्य है कि इस देश की जो रीढ़ की हड्डी है, किसान, मजदूर, छोटे दुकानदार, व्यापारी, उस रीढ़ की हड्डी को तोड़कर, टुकड़े-टुकड़े करके दो मित्रों को दे दो।
तो ‘हम दो- हमारे दो’। वो आपको याद होगा, वो फोटो होती थी चार, हम दो – हमारे दो। क्यूट से चेहरे थे, सुंदर-सुंदर चेहरे, मोटे-मोटे चेहरे, हम दो –हमारे दो। खैर, इससे होगा क्या? जब ये कानून लागू होंगे, तो जो इस देश के किसान हैं, इस देश के मजदूर हैं, छोटे व्यापारी हैं, इनका धंधा बंद हो जाएगा। इनमें से किसानों की खेती चली जाएगी, किसान को सही दाम नहीं मिलेगा, छोटे दुकानदारों की दुकान बंद हो जाएगी और सिर्फ हम दो और हमारे दो इस देश को चलाएंगे। हिंदुस्तान का फूड सिक्योरिटी का सिस्टम है, वो नष्ट हो जाएगा और पहली बार, सालों बाद, पहली बार हिंदुस्तान के लोगों को भूख से मरना पड़ेगा। रुरल इकोनॉमी नष्ट हो जाएगी और ये देश रोजगार नहीं पैदा कर पाएगा।
ये नई चीज नहीं है। ये आप मत सोचिए कि ये नया अटेंप्ट है, ये पहला अटेंप्ट नहीं है, ये काम प्रधानमंत्री ने ‘हम दो – हमारो दो’ के लिए पहले नोटबंदी में शुरु किया था। पहली चोट नोटबंदी थी। आईडिया क्या था – गरीबों से, किसानों से, मजदूरों से उनका पैसा लो, बैंक में डालो और ‘हम दो –हमारे दो’ की जेब में डालो। स्मॉल मिडियम सेक्टर को खत्म कर दिया, किसानों को बर्बाद कर दिया। वहाँ नहीं रुके, फिर गए जीएसटी, गब्बर सिंह टैक्स। 5 अलग-अलग टैक्स और फिर से उन्हीं बेचारों पर आक्रमण, उन्हीं किसानों पर, उन्हीं मजदूरों पर, उन्हीं व्यापारियों पर आक्रमण। फिर कोरोना आता है। कोरोना के समय मजदूर चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं- “हमें बस का टिकट दे दीजिए। हमें ट्रेन का टिकट दे दीजिए” “नहीं- नहीं