नई दिल्ली / अजीत सिन्हा
पवन खेरा, अध्यक्ष, मीडिया एंव प्रचार (संचार विभाग), एआईसीसी और डॉ अमी याज्ञनिक, सांसद, ने आज एआईसीसी मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया। पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- तथाकथित शराबबंदी वाले गुजरात में जहरीली शराब पीने की वजह से 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है और 100 से ज्यादा लोग जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। यह जानकारी सामने आई है कि बोटाद जिले में 600 लीटर ‘मिथाइल अल्कोहल’ (मेथेनॉल) अहमदाबाद से लाया गया था। उसके बाद इसमें पानी मिलाकर जिले के विभिन्न इलाकों में बेच दिया गया। जिसके सेवन से या तो लोगों की जान चली गई या किडनी डैमेज हो गई है। इतने खतरनाक रसायनिक पदार्थ के उत्पादन और बिक्री पर सरकार की कड़ी निगरानी होनी चाहिए। लेकिन इस मामले में जो हुआ उससे कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
अहमदाबाद से ‘मिथाइल अल्कोहल’ बोटाद जिले में लाया गया, उसमें पानी मिलाया गया और शराब के रूप में लोगों को बेच दिया गया। एक ड्राई स्टेट में इतना सब कुछ हो जाए और स्थानीय पुलिस-प्रशासन को भनक तक नहीं लगे, ये संभव नहीं है। जरूर इसके पीछे सत्ताधारी दल के नेता, पुलिस-प्रशासन और शराब माफियाओं की मिलीभगत रही होगी। और ये सिर्फ आरोप नहीं है इसके पीछे ठोस आधार भी है। क्योंकि रोजीद गांव के सरपंच लगातार प्रशासन को पत्र लिख कर बता रहे थे कि गांव में सरेआम देसी शराब की बिक्री हो रही है। सरपंच ने एसपी तक को पत्र लिखा और गृह मंत्री तक भी अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की कि गांव में खुलेआम शराब बेची जा रही है, असामाजिक तत्व महिलाओं को परेशान कर रहे हैं और गालियां दे रहे हैं। गांव में किसी बड़े हादसे की आशंका है। लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
जहरीली शराब से जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों का मीडिया में रोते हुए बयान है कि यहां कोई शराबबंदी नहीं है, खुलेआम शराब बिक रही है। यदि पूरे गुजरात की बात करें तो करीब 15,000 करोड़ रुपए का सालाना अवैध शराब का कारोबार हो रहा है। मोदी जी के गाँव वड़नगर से लेकर हर ज़िले में शराब का ग़ैर क़ानूनी धंधा फल फूल रहा है। 2009 में भी ऐसी ही त्रासदी हुई थी। 150 जानें गयी थी। उस वक्त जितने भी लोग सस्पेंड हुए थे, वे सब फिर से बहाल कर दिए गए। इस बार भी मामले की कुछ वैसे ही लीपापोती की जा रही है। इतना बड़ा मामला हुआ, करीब 50 लोगों की जान गई, 100 से ज्यादा लोग जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं लेकिन न तो गृह मंत्री ने, न मुख्यमंत्री ने और ना ही प्रधान मंत्री ने मृतकों के परिवारों से मुलाक़ात की। जबकि प्रधानमंत्री गुजरात में ही हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के गृह राज्य गुजरात में करोड़ों का ड्रग्स पकड़ा जाना और शराब के अवैध कारोबार का इस तरह फलना फूलना महज संयोग नहीं हो सकता है। यह स्पष्ट तौर पर सत्ता के संरक्षण में किया जा रहा प्रयोग है। इसलिए हमारी मांग है कि…
1. जहरीली शराब कांड की हाई कोर्ट के सीटिंग जज द्वारा जांच होनी चाहिए। क्योंकि जिस पुलिस पर आरोप है यदि वही जांच करेगी तो जांच का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
2. जहरीली शराब पीने की वजह से जिन लोगों की मौत हुई है उनमें से अधिकांश गरीब थे और घर चलाने की उन पर जिम्मेदारी थी। ऐसे परिवारों को समुचित मुआवजा दिया जाए।
3. इस कांड की वजह से जिनकी आंखें चली गई हैं या किडनी डैमेज हो गई है उनके लिए मुफ्त और बेहतर इलाज की व्यवस्था हो।
डॉ. अमी याजनिक ने कहा कि बहुत ही अहम मुद्दा है। ये बार-बार जो गुजरात में लट्ठा कांड हो रहा है और बार-बार इस पर जवाबदेही आई है,सरकार पर जवाबदेही नहीं समझती। तो आपको मैं ये बताऊँगी कि 2009 में भी ऐसा ही एक लट्ठा कांड हुआ था और उस टाइम तत्कालीन चीफ जस्टिस राधाकृष्णन ने सो मोटो संज्ञान लिया था, इसका और तब सरकार ने 2009 में रिपोर्ट बताई थी कि हम ये-ये काम करेंगे। हम ये जो सारे कैमिकल्स आते हैं, उनको पकड़ेंगे, केसेस करेंगे। केसेस भी रजिस्टर हुए, उस पर केसेस भी चले कोर्ट में, उसके बाद इन्होंने ये जो कानून है, उसको स्ट्रिक्ट बना दिया, उसको मर्डर के तहत ले गए पर अब तक कोई ऐसा कन्विक्शन नहीं हुआ है। पर उससे ज्यादा आगे जाकर तो 2013 में एक खंडपीठ ने चीफ जस्टिस भास्कर भट्टाचार्य और जस्टिस जमशेद पारदीवाला ने इसका संज्ञान लिया और इतने सारे डायरेक्शन्स दिए, स्टेट गवर्मेंट को कि चलो आप बनाते हो पॉलिसी पर पुलिस अथॉरिटी क्या कर रही हैं, वो इसको इम्प्लिमेंट क्यों नहीं कर रही है? तो ये सारे जवाब आपको उस स्टेट रिपोर्ट्स में मिलेंगे कि इतने करोड़ों का दारु पकड़ा जाता है। ऐसे लट्ठा कांड होते हैं, तो हम इतने केसेस करते हैं। केसेस भी लाखों में हुए हैं। सारे केसेस कोर्ट में पड़े हैं, फिर भी आज जो ये घटना घटी है, आज आप देख रहे हैं कि 50 तकरीबन लोगों की मौत होती है। तो चाहे वो संज्ञान लें या न लें, पर ये इम्प्लिमेंट क्यों नहीं हो रहा है? ये कोर्ट के डायरेक्शन्स होते हुए, पुलिस क्यों वहाँ काम नहीं कर रही है, इसका सरकार को जवाब देना चाहिए?मुझे लगता है कि 2009 में और 2013 की बात करें, हर जगह इस केस का रिकॉर्ड है, कोर्ट का भी रिकॉर्ड है, मिल जाएगा, सरकार ने जो एफिडेविट किए, जो रिपोर्ट दी है, तो कहाँ क्या हो रहा है, कौन सी इंडस्ट्री को हमें बंद करना है। तब प्रधानमंत्री वहां के चीफ मिनिस्टर थे और ये सारे रिपोर्ट्स उनकी जानकारी में दिए गए हैं, सरकार के द्वारा। तो आज प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोल रहे हैं, तो मुझे समझ में नहीं आता है कि ये कौन सी जवाबदेही, कौन से गवर्नेंस मॉडल की प्रधानमंत्री बात कर रहे हैं। सबसे जरुरी बात तो ये है कि उस समय होम मिनिस्टर भी अमित शाह थे वहाँ पर, गुजरात में और उनको भी पूछा गया था, जब उन्होंने ये रिपोर्ट कोर्ट में दी थी। तो ये लगता है कि बिल्कुल देखते हुए भी नहीं देखना चाहते और गुजरात की हालत बहुत बदतर कर दी है। कल आपने शायद देखा होगा कि महिलाएं कह रही हैं कि हम कैसे हमारा गुजारा करेंगे। हमें पता नहीं है कि क्या बेचा जा रहा है और आप अगर देखेंगे एक और पीआईएल भी हाई कोर्ट में चल रही है कि इतनी सारी कैमिकल इंडस्ट्रीज, बिना रोक-टोक, बिना पॉल्यूशन कंट्रोल के नॉर्म्स, बिना फॉलो करते हुए सारी नदियों में वो डाल रही हैं, वो भी पीआईएल चालू है। तो मुझे लगता है कि गुजरात सरकार को जवाब देना बहुत आवश्यक हो गया है कि आप क्या कर रहे हैं, ये लट्ठा क्यों बन रहा है, जहाँ प्रॉहिबिशन लॉ है, जहाँ इतनी कानून की व्यवस्था बता रहे हैं कि है, और वहाँ मॉनिटरिंग नहीं है, इम्प्लिमेंटेशन नहीं है और एक लफ्ज आज न तो यहाँ के होम मिनिस्टर, जो वहाँ पर थे 2009 और 2013 में और प्रधानमंत्री वहाँ पर चीफ मिनिस्टर थे, 2009 और 2013 में आज एक ट्वीट नहीं करते? चलो ट्वीट नहीं करते, कोई बात नहीं, पर जा तो सकते हैं।
आज तीसरी बार या चौथी बार इन 4-5 दिनों में कहीं न कहीं जा रहे हैं, तो गुजरात तो जा सकते हैं और प्रधानमंत्री नहीं जा सकते तो कम से कम अमित शाह तो जा सकते हैं, अपने होम मिनिस्टर तो जा सकते हैं। तो कुछ बात नहीं कहते, क्या स्टैप लिया, वो नहीं बताते हैं। तो वो जो इंटीरियर में, ये विलेजेस में, या ये डिस्ट्रिक्टस में ये बन रही हैं, भट्टियां हैं, उनका तो हमें पता होना ही चाहिए कि अगर व्यक्ति को इतना पता है, गुजरात का और इसका पता नहीं है, तो मुझे समझ में नहीं आता है कि वो जानबूझकर देश को बताना नहीं चाहते हैं। ये विफलता है, बिल्कुल काम नहीं कर रही है, जो आपका सिस्टम है, वहाँ पर और न तो आपने कोई पुलिस अधिकारी को पूछा है कि यहाँ कोई लॉ एंड ऑर्डर की व्यवस्था क्यों नहीं है। यहाँ इल्लीगल लिकर क्यों बन रही है?तो ये बात मैं प्रधानमंत्री से सीधा पूछना चाहती हूँ कि आज आप गुजरात में हैं, अहमदाबाद में हैं, गांधी नगर में हैं, तो आप क्या उन बहनों के साथ बात करेंगे? आप पूछेंगे अपने पुलिस सिस्टम को वहाँ पर कि क्या चूक हो रही है? What is this policy, which you are not implementing? आप क्या स्ट्रिक्ट एक्शन लेंगे? तो ये सवाल पूछना आज बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि वो सिर्फ सक्सेस स्टोरीज बताते हैं, जिसका कुछ डेटा अवेलेबल नहीं है और यहाँ डेटा अवेलेबल है, तो उस पर बात करना नहीं चाहते हैं, तो मैं आज कहना चाहती हूँ कि गुजरात में हालत बहुत खराब है और ये लट्ठा कांड तो बाहर आया हुआ है, हमें अभी तो पूरे आंकड़े नहीं मिले, पूरे गांव के गांव में ये लट्ठा बनता है, बिकता है, हैल्थ सिस्टम भी फेल हो गया है। तो मुझे लगता है कि ये बहुत सीरियस मामला है और उसका संज्ञान लेकर आज ही प्रधानमंत्री को जवाब देना बहुत जरुरी है। पवन खेड़ा ने जोड़ा कि जो गांव के सरपंच हैं, उन्होंने लगातार पत्र लिखे पुलिस प्रशासन को, गृहमंत्री तक को पत्र लिखे कि यहाँ इस तरह की शराब खुलेआम बिक रही है। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है और यहाँ कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। ये सरपंच की चिट्ठियाँ ऑन रिकॉर्ड हैं। अभी आपके पास व्हाट्सएप ग्रुप में भी हम डाल रहे हैं, उसके बावजूद जैसा कि अमी बेन कह रहीं थी कि या तो आपको जानकारी नहीं है, इस बात पर तो हम विश्वास नहीं कर सकते। जानकारी होने के बावजूद, सरपंच के पत्रों के बावजूद अगर आपने एक्शन नहीं लिया तो फिर माफ कीजिएगा, आपकी मिलीभगत है, गुजरात सरकार की मिलीभगत है।
प्रधानमंत्री ने कहा था गुजरात की महिलाओं को कि आपका बेटा, आपका भाई हूँ मैं, जब भी मेरी आवश्यकता पड़े, मुझे बुलाइएगा। आज आप हैं, वहाँ; हम फिर से आपसे आग्रह करेंगे कि आपकी 50 बहनें विधवा हो चुकी हैं, क्या आप उनके दरवाजे पर जाएंगे?गुजरात के शराब कांड को लेकर पूछे एक प्रश्न के उत्तर में खेड़ा ने कहा कि दो चीजें, जैसा कि मैंने आपको बताया, ये कोई ऐसा तो है नहीं कि परसों शराब बननी शुरु हुई और परसों बिक गई और परसों लोगों की मौत हो गई। ये तो जैसा कि अमी बेन बता रहीं हैं, लट्ठा की भट्टियाँ चल रही हैं गांव में, तो क्या इन्हें जानकारी नहीं थी? 2009 के बाद भी यही बात हुई थी, जो आप बोल रहे हैं। एक्शन हुआ, लोगों को सस्पैंड किया, फिर से सब बहाल कर दिया। तो मजबूरी क्या है, क्यों एक दूसरे को बचाया जा रहा है, कौन है इसके पीछे, इसका सरगना कौन है? ये कोई ऐसा नहीं होता कि कोई घर में एक दुकान बना ली और बेचनी शुरु कर दी। ये एक नेटवर्क होता है, इस नेटवर्क में मिलीभगत होती है। मिलीभगत में पुलिस, प्रशासन, नेता सब शामिल होते हैं, विशेषतौर पर रूलिंग पार्टी पर इसका बहुत ध्यान हमें देना चाहिए कि ये लोग, क्योंकि सत्ता इन्हीं के हाथ में है और पिछले 27-28 साल से ये ही सत्ता में हैं, तो अब ये कह देना कि अब हम सांप तो निकल गया, लाठी पीट रहे हैं, तो उससे कोई अर्थ नहीं निकलता।