नई दिल्ली /अजीत सिन्हा
श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सबको मेरा नमस्कार! और 9 साल का जश्न क्योंकि मोदी सरकार मना रही है, तो जरूरी है कि आईना भी दिखाया जाता रहे। नरेन्द्र मोदी ने वो कीर्तिमान स्थापित किया है, जो इस देश के 14 प्रधानमंत्री उनसे पहले नहीं कर पाए हैं। इस देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर मात्र 55 लाख करोड़ रुपए का कर्जा लिया, 67 साल में 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल 55 लाख करोड़ का कर्जा लिया और हर बार रेस में आगे रहने की चाहत वाले नरेन्द्र मोदी जी ने पिछले 9 साल में हिन्दुस्तान का कर्जा तिगुना कर दिया, 100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्जा उन्होंने मात्र 9 साल में ले लिया, कहां 67 साल में 55 लाख करोड़ लिया गया था, तो एक नया कीर्तिमान उन्होंने वो स्थापित किया जो इस देश के 14 और प्रधानमंत्री नहीं कर पाए।
सिम्पल तौर पर बता दूं अगर इस समय, इस वक्त, इस सेकण्ड पर एक बच्चा इस देश में पैदा हो रहा है तो उसके सिर पर भी 1,20,000 रुपए का कर्जा लादने का काम मोदी सरकार ने पिछले 9 साल में किया है और अगर और सिम्पली बोलने पर आ जाऊं तो हर सेकंड इस सरकार ने 4 लाख रुपए का कर्जा लिया है, हर मिनट पर लगभग ढाई करोड़ का लिया है, हर घंटे पर 144 करोड़ का कर्जा लिया है, 3,456 करोड़ का कर्जा हर दिन लिया है, हर महीने 1 लाख करोड़ से ज्यादा और हर साल लगभग साढ़े बारह लाख करोड़ का कर्जा लिया है इसीलिए 9 सालों में 100 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्जा लेने का कीर्तिमान और इस देश के लोगों को कर्जे के बोझ तले दबाने का कीर्तिमान नरेन्द्र मोदी जी ने स्थापित किया है।बात बात पर बाक़ी देशों का हवाला देने वाली इस सरकार का कड़वा सच यह है कि भारत का ऋण और GDP का अनुपात 84% से ज़्यादा है जबकि बाक़ी विकासशील / उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का औसतन अनुपात 64.5% है.समस्या यह ऋण चुकाने की भी है – इस ऋण को चुकाने में हर साल 11 लाख करोड़ का तो ब्याज ही दिया जा रहा है. CAG की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में ही ऋण स्थिरता नकारात्मक हो गई थी, जबकि तब सरकारी क़र्ज़ GDP का 52.5% था जो अब बढ़ कर 84% आ पहुँचा है – इसीलिए ऋण चुकाने की क्षमता भी अब संदिग्ध है।पर बड़ा सवाल तो यह भी है कि इस बढ़ते हुए कर्ज़ से फ़ायदा किसको हो रहा है. क्योंकि एक बात साफ़ है कि इस भयावह क़र्ज़ के बोझ के तले देश का आम आदमी दबा ज़रूर है लेकिन इसका लाभ ना तो ग़रीब को ना मध्यम वर्ग को बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री के चंद पूंजीपति मित्रों को ही मिल रहा है. 23 करोड़ लोग ग़रीबी की सीमा रेखा से नीचे हैं, 83% लोगों की आय घटी है, एक साल में क़रीब 11,000 से ज़्यादा लघु मध्यम उद्योग (MSME) बंद हो गए हैं लेकिन देश भर में अरबपतियों की संख्या 2020 में 102 से बढ़कर 2022 में 166 हो गई!लेकिन क्या सबसे बड़े लाभार्थी होने के बावजूद यह पूँजीपति देश के विकास में या टैक्स अदा करने में कोई कारगर भूमिका निभा रहे हैं? इसीलिए बात कर लेते हैं – एक और जुड़े हुए तथ्य की – और वो है टैक्स कलेक्शन। मोदी सरकार के अल्पज्ञानी कूद लिए कर बतायेंगे कि पिछले 9 सालों में ना सिर्फ़ क़र्ज़ बल्कि टैक्स कलेक्शन भी तिगुना हो गया है. पर इससे ज़्यादा बड़ा कोई कुतर्क हो ही नहीं सकता.इस भयावह आर्थिक असमानता के दौर में टैक्स की असल वसूली तो देश के सबसे गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोग ही कर रहे हैं. GST कलेक्शन का डंका पीटने वाले यह नहीं बताते हैं कि जिस 50% की आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का सिर्फ 3% हिस्सा है वो 64% से ज़्यादा GST कलेक्शन का भुगतान कर रही है, सबसे गरीब 50% जीएसटी का दो-तिहाई से ज्यादा पैसा दे रहा है 64%, मध्यम वर्ग 40% जीएसटी का पैसा दे रहा है और यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन 10% धन्ना सेठों के क़ब्ज़े में देश की 80% संपत्ति है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ GST कलेक्शन का मात्र 3-4% ही भुगतान कर रहे हैं। सबसे गरीब 50% इस देश की जनता सारे जीएसटी का 64% दे रही है, उनके पास इस देश की मात्र 3% संपत्ति है और जिन 10% की इस देश की 80% संपत्ति पर कब्जा करके बैठे हैं वो मात्र 3% जीएसटी कलेक्शन का दे रहे हैं और ये पानी की तरह साफ़ है कि आटा, दही, दवाई, पढ़ाई पर लगे GST का बोझ तो गरीब ही उठा रहा है – आपके जैसे मध्यम वर्ग का दोहन किया जा रहा है और साहेब के चहेते सेठ मस्त हैं.लेकिन सच्चाई से मुँह मोड़ कर खड़ी मोदी सरकार की आँख तो तथ्य देख कर भी नहीं खुलती. GST जैसे इनडायरेक्ट टैक्स का प्रहार सबसे ज़्यादा गरीब पर होता है – आज हिंदुस्तान कंजम्पशन मतलब उपभोग का गिरना इसी बात का सबूत है. हाल ही के आए GDP आँकडें में भी उपभोग पिछले साल के मुक़ाबले इस साल गिरा है (61.1% of GDP से गिरकर 60.6%) सीधे शब्दों में कहें तो भारत की निचली 50% आबादी शीर्ष 10% की तुलना में अपनी आय के प्रतिशत के हिसाब से GST और excise duty जैसे इनडायरेक्ट टैक्स पर छह गुना से ज़्यादा भुगतान कर रही है और आपकी जानकारी के लिए हमने इस मंच से पहले भी साझा किया है, अभी भी साझा कर देते हैं वसूली तो आप ही की जेबों से हो रही है, डाका तो आप ही के पर्स पर पड़ रहा है, आप ही के घर के बजट पर पड़ रहा है।सरकार की लूट का यह आलम है कि रुपये की ख़रीद की क्षमता से देखा जाए तो दुनिया में सबसे महँगी रसोई गैस, तीसरा सबसे महँगा पेट्रोल और आठवाँ सबसे महँगा डीजल भारत देश में बिक रहा है. तो भईया अच्छे दिन किसके आए हैं, कहां है वो मायावी अच्छे दिन जो आ ही नहीं पाए हैं। कर्जे के तले हम दबे हैं, उपभोग हम कम कर रहे हैं, महंगाई से हम त्रस्त हैं, लगातार पेट्रोल, डीजल, एलपीजी के दामों को बढ़ाया जा रहा है और अंत में एक बात मैं ये जरूर कहूंगी क्योंकि ये कहनी जरूरी है कि जो टैक्स वसूली हो रही है चाहे वो जीएसटी के थ्रू है, चाहे वो एक्साईज ड्यूटी, फ्यूल के थ्रू हो जहां पर आपको महंगा एलपीजी, महंगी पेट्रोल, महंगी डीजल और डीजल के महंगे होते बाकी फल, सब्जी जो सब महंगी है उसका प्रभाव आम आदमी पर पड़ रहा है, उसका प्रभाव मोदी जी के मित्रमंडली पर नहीं पड़ रहा है, धन्ना सेठों पर नहीं पड़ रहा है।इसीलिए अंत में हम ये जरूर कहना चाहते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी बहुत बड़ी बड़ी बातें करते थे मान्यवर – पर अब 9 साल से प्रधानमंत्री के पद पर रहकर अपने आर्थिक कुप्रबंधन से इस देश की अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क करके, महंगाई, बेरोज़गारी और क़र्ज़े का बोझ लाद देने के बाद मोदी जी आपको भी समझना पड़ेगा कि सिर्फ़ ज़बानी जमा खर्च और कैमराजीवी बने रहने से काम नहीं चलने वाला – हम इस मंच से माँग करते हैं कि सरकार बिना विलंब के आज हिंदुस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था पर एक श्वेतपत्र जारी करे।
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