अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: इस साल की शुरुआत में, कांग्रेस पार्टी ने हम अडानी के हैं कौन (HAHK) श्रृंखला के तहत प्रधानमंत्री मोदी से उनके पसंदीदा बिज़नेस ग्रुप के साथ उनके संबंधों की वास्तविकता को लेकर 100 सवाल पूछे थे। प्रधानमंत्री ने इनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। उन्होंने अपने और अपने प्रिय मित्रों के द्वारा की जा रही राष्ट्रीय संपत्ति की अंधाधुंध लूट से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पीआर स्टंट, हेडलाइन मैनेजमेंट और भाषणबाजी का सहारा लिया। लेकिन सच्चाई छुपने वाली नहीं है। राउंड-ट्रिपिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और SEBI कानूनों के खुलेआम उल्लंघन में शामिल अडानी के विश्वस्त लोगों के एक संदेहास्पद नेटवर्क के बारे में नए खुलासे से पता चला है कि कैसे प्रधानमंत्री और उनके मित्र भारत के गरीबों और मध्यम वर्ग की क़ीमत पर ख़ुद को और भाजपा को समृद्ध कर रहे हैं। यह कोई प्रतीकात्मक लूट नहीं है, यह करोड़ों भारतीयों की जेब से सरेआम चोरी है।
फाइनेंशियल टाइम्स (FT) अखबार के ताज़ा खुलासे से पता चला है कि राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) द्वारा लगाए गए आरोप कितने सही हैं। DRI को इस बात के सबूत मिले थे कि अडानी ग्रुप कोयला आयात की ओवर-बिलिंग (फर्जी ढंग से कोयले की क़ीमतें बढ़ाकर) करके भारत से हजारों करोड़ रुपए चोरी-छिपे बाहर भेजे थे। प्रधानमंत्री ने भले ही बाद में जांच को ‘रोक’ दिया हो और देश की जांच एजेंसियों को बेहद कमजोर कर दिया हो, लेकिन फिर भी सच्चाई सामने आ ही गई है।फाइनेंशियल टाइम्स ने 2019 और 2021 के बीच अडानी समूह द्वारा 3.1 मिलियन टन अडानी की तीस कोयला शिपमेंट का अध्ययन किया है। इसमें पाया गया कि इंडोनेशिया में शिपिंग और बीमा सहित घोषित कुल लागत 142 मिलियन डॉलर (1,037 करोड़ रुपए) थी, जबकि भारतीय सीमा शुल्क के लिए घोषित मूल्य 215 मिलियन डॉलर (1,570 करोड़ रुपए) था। यह 52% प्रॉफिट मार्जिन है या केवल तीस शिपमेंट में 533 करोड़ रुपए की निकासी के बराबर है। अडानी का मोदी-मेड मैजिक कोयला व्यापार जैसे कम मार्जिन वाले व्यवसाय में भी दिखाई देता है। इससे एक बहुत बड़ा घोटाला सामने आता है। सितंबर 2021 और जुलाई 2023 के बीच, 2000 कोयला शिपमेंट से अडानी ने कुल 73 मिलियन टन कोयले का आयात किया। इसमें से अडानी ने सीधे तौर पर 42 मिलियन टन और अडानी से जुड़े तीन बिचौलियों ने 31 मिलियन टन का आयात किया। पिछले दो साल में अडानी ने तीनों कंपनियों को 4.8 अरब डॉलर (37,000 करोड़ रुपए) का भुगतान किया है। यदि तीस शिपमेंट के समान ही लूट मार्जिन को इस राशि पर लागू किया जाए, तो उसके हिसाब से केवल दो वर्षों में 12,000 करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी हो सकती है। NTPC ने 2022 में अडानी से 17.3 मिलियन टन इंडोनेशियाई कोयले का ऑर्डर दिया था। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पब्लिक सेक्टर को भी लूटा जा रहा है। और चुकी पब्लिक सेक्टर में करदाताओं के पैसे लगे होते हैं इसलिए यह जनता के पैसों की खुलेआम लूट है।ये बिचौलिए हैं कौन? एक फर्म ताइवान में चांग चुंग-लिंग के स्वामित्व वाली हाय लिंगोस है, दूसरी दुबई स्थित टॉरस है – जिसका स्वामित्व मोहम्मद अली शाबान अहली के पास है और तीसरी सिंगापुर की पैन एशिया ट्रेडलिंक है जिसका स्वामित्व अडानी के एक पूर्व कर्मचारी के पास है। ये उन लोगों के लिए जाने-पहचाने नाम हैं, जो अडानी महाघोटाले को फॉलो कर रहे हैं। केवल दो महीने पहले ही हमें पता चला था कि अडानी इंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, अडानी पावर और अडानी ट्रांसमिशन में जितने बेनामी होल्डिंग हैं, उनका 8-14% चांग और नासिर अली शाबान अहली नियंत्रित करता है। यह खेल मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह से चल रही शेल कंपनियों के माध्यम से खेला जा रहा था जो SEBI के कानूनों का खुलेआम उल्लंघन था।
अडानी महाघोटाले की पूरी स्थिति धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है
DRI को पहले बिजली उत्पादन के लिए आयात होने वाले उपकरणों के ओवर इनवासिंग के सबूत मिले थे। अब इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि अडानी द्वारा आयातित कोयले की क़ीमत भी बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है। 52% मार्जिन के माध्यम से पैसा उन्हीं लोगों के द्वारा निकाला जा रहा है – चांग और अहली – जो इसे वापस अडानी इक्विटी में निवेश कर रहे हैं और अडानी के शेयरों की क़ीमतों में हेरफेर कर रहे हैं। बढ़ी हुई शेयरों की क़ीमतों – कुछ वर्षों में उनमें 2,000% की वृद्धि हुई – के कारण अडानी और भी अधिक प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाने के लिए पूंजी का प्रबंध करने में सक्षम हुआ है।ये प्रोजेक्ट्स मिलते कहां से हैं? बिना किसी संदेह के, प्रधानमंत्री मोदी से। प्रधानमंत्री की मदद से ही इन फंड्स को हवाई अड्डों, बंदरगाहों, रक्षा और कई अन्य क्षेत्रों में एकाधिकार कायम करने के लिए लगाया जाता है। प्रधानमंत्री की मदद से, ED, CBI और इनकम टैक्स विभाग का इस्तेमाल कंप्टीशन को मैनेज करने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि संपत्ति अडानी के हाथों में ही जाए। प्रधानमंत्री की मदद से अडानी को बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे मित्र पड़ोसी देशों में भी कॉन्ट्रैक्ट्स मिलते हैं। इसके बदले में, भाजपा को चुनावी बांड्स के रूप में भरपूर धन मिलता है। इस धन का इस्तेमाल विधायकों को ख़रीदने और विपक्षी दलों को तोड़ने के लिए किया जाता है।
मुख्य मुद्दा यह है: अडानी और प्रधानमंत्री यह पैसा भारत के लोगों से ले रहे हैं। विद्युत अनुबंधों में अतिरिक्त पूंजी लागत और ईंधन की बढ़ी हुई क़ीमतों को उपभोक्ताओं से वसूलने की व्यवस्था है। अब यह स्पष्ट है कि बिजली की क़ीमतें इतनी क्यों बढ़ गई हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात सरकार ने लिखित रूप में स्वीकार किया है कि, 2021 और 2022 के बीच, अडानी पावर से ख़रीदी गई बिजली की क़ीमत में 102% की बढ़ोतरी हुई है। दूसरे राज्यों में भी ऐसे मामले सामने आए हैं। झारखंड में एक राज्य सरकार के ऑडिटर ने 12 मई 2017 को लिखित रूप में कहा कि अडानी के गोड्डा पावर प्लांट से संबंधित नियामक परिवर्तन “पक्षपात” के समान हैं और इससे कंपनी को 7,410 करोड़ रुपये का “अनुचित लाभ” मिलेगा।देश के लोग कोयले और बिजली-उपकरणों के लिए ज्यादा भुगतान करने को मजबूर हैं। यह देश के आम और गरीब लोगों का पैसा है, जिसे प्रधानमंत्री को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह भारत के लोगों से स्पष्ट रूप से चोरी है। और जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकारें मोदी सरकार द्वारा पैदा किए गए दर्द को कम करने के लिए कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जनकल्याणकारी गारंटियों को लागू करती है या मध्य प्रदेश और तेलंगाना में लागू करने का वादा करती है तो प्रधानमंत्री इसका “रेवड़ी” कहकर मजाक उड़ाते हैं। पहले वह अपने अरबपति मित्रों की मदद करने के लिए आपके जीवन में दर्द और परेशानी पैदा करते हैं और फिर वह उन लोगों पर हमला करतें हैं जो आपके दर्द को बांटना चाहते हैं या कम करने की कोशिश करते हैं। याद करें कि अडानी ऐसे समय में भी मुनाफ़ा कमा रहा था जब करोड़ों भारतीय कोविड और आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। साथ ही वे जीवित रहने के लिए अपने खून पसीने की कमाई को निकालने को मजबूर थे, क्योंकि उनकी जेबें काटी जा रही थीं।
यह आधुनिक भारत का सबसे बड़ा घोटाला है। यह घटनाक्रम इस घोटाले के कर्ताधर्ताओं का लालच और संवेदनहीनता के साथ- साथ भारत के लोगों के प्रति तिरस्कार को दिखाता है। इनको विश्वास है कि ऐसा कोई घोटाला नहीं है जिसे ‘मैनेज’ नहीं किया जा सकता है और ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिससे ध्यान नहीं भटकाया जा सकता है। लेकिन शहंशाह गलतफहमी में हैं। भारत पर मोदानी का कब्जा नहीं होगा। भारत की जनता 2024 में जवाब देगी।