अजीत सिन्हा/ नई दिल्ली
प्रियंका गांधी ने कहा कि प्रदेश की स्थिति बहुत खराब है। आप सब जानती हैं कि ज्यादा से ज्यादा जो संघर्ष है, वो महिला करती है। कुछ समय पहले, कुछ दिनों पहले ही मैं ललितपुर गई थी, मैं इसलिए गई, क्योंकि मैंने सुना कि दो किसानों ने खाद की लाइन में खड़े-खड़े अपना दम तोड़ा है और दो किसानों ने आत्महत्या की थी। तो मैं उनके घर गई। उनके घर गई, तो उनकी एक बेटी थी, बीवी थी, माता जी थी। कुछ नहीं था उनके पास, कर्ज में डूबे हुए थे। खाद की लाइन में खड़े-खड़े ना खाना मिला, ना कुछ मिला। घर नहीं आ पाए, क्योंकि उन्होंने सोचा कि अगर लाइन छोड़ेंगे, तो एक बार लाइन छुट जाएगी, तो खाद नहीं मिलेगी। अच्छी बारिश आई थी पहले, उन्होंने सोचा कि थोड़ा संघर्ष करें। संघर्ष करते-करते वहाँ पर उनकी मृत्यु हुई। जब मैं उनकी बेटी से मिली, उनकी बीवी से मिली, तो घर लौटते वक्त मैंने सोचा कि जो भी हो, सबसे ज्यादा मुश्किल तो महिला पर ही होती है। अब वो मां, वो बेटी अकेली-अकेली क्या करे। जो कमाना वाला था, वो रहा नहीं, घर में और कोई कमा नहीं रहा था।
इसी तरह से चाहे कोई भी सामाजिक समस्या हो, उसका पूरा बोझ महिला उठाती है। आप सब अपने घरों में महंगाई का बोझ उठा रही हैं। 250 रुपए में सरसों का तेल मिल रहा है आपको। सरकार कहती है कि एक सिलेंडर पकड़ा दो। एक मुफ्त का सिलेंडर दे दिया और सोचती है कि अपना काम ही खत्म हो गया है। आप उस सिलेंडर को भरवा नहीं पा रही हैं। नया सिलेंडर 1,000 रुपए का मिल रहा है। सरकार ने सोच रखा है कि महिलाओं के लिए ये तोहफे देकर सब काम पूरा हो जाएगा। सरकार आपकी शक्ति पहचानना नहीं चाह रही है।आपको आगे बढ़ाना नहीं चाह रही है। जब महिला आगे बढ़ना चाहती है, तो तरह-तरह की समस्याएँ उसके सामने आती हैं। आप सबने देखा होगा, यहाँ जो अधिवक्ता बहन थी, जो बात कर रही थी, कितना संघर्ष किया होगा आपने यहाँ तक पहुंचने के लिए। जिस तरह से आपने किया है और जिस तरह से जो लड़की, जो अभी डॉक्टर बनने के लिए शिक्षा ग्रहण कर रही है, वो भी कह रही थी,क्या संघर्ष था उसका कि यहाँ पर मेडिकल कॉलेज नहीं है,उसे कहीं और जाना पड़ा। बहुत बड़े संघर्ष होते हैं महिलाओं के लिए, जिनको आप सब झेल रही हैं, आप सब कर रही हैं।यहाँ आपके क्षेत्र में पानी की व्यवस्था नहीं है। एक-एक नल से 10-10 लोग पानी ले रहे हैं। 10-10 परिवार एक नल पर निर्भर हैं। उद्योगों का अभाव है। रोजगार नहीं मिलते। कोरोना के समय आप सबने देखा जब लॉकडाउन हुआ, तो जितने भी यहाँ से प्रवासी परिवार थे, कितना संघर्ष करके वापस आए। सरकार ने उस समय मदद नहीं की। उस समय कोई बसें नहीं लाए आपके लिए। 19 तारीख को मोदी जी यहाँ भाषण देने आ रहे हैं, कल से बसें तैयार हो रही हैं। तो जो आपकी समस्याएं हैं, उनको हल करने के लिए आप कैसे काम करेंगे – देखिए ये आपको बहुत अच्छी तरह से समझना पड़ेगा कि आपके लिए कोई और संघर्ष नहीं करेगा। महिला का संघर्ष उसका अपना संघर्ष होता है। उसे अपनी शक्ति पहचाननी पड़ती है और अपनी शक्ति के बल पर उसे संघर्ष करना पड़ता है और लड़ना पड़ता है। अब मैं क्यों कह रही हूं कि 40 प्रतिशत महिलाओं को राजनीति में आना चाहिए और इस विधानसभा के चुनाव में खड़ा होना चाहिए। क्यों कह रही हूं, क्योंकि जब तक महिलाएं आपकी तरह राजनीति में नहीं आएंगी, जब तक आगे नहीं बढ़ेंगी, जब तक आपके यहाँ से विधानसभा की विधायिका नहीं होगी, तब तक आपके लिए आपके पक्ष में नीतियां कैसे बनेंगी? एक महिला समझ सकती है, चाहे कहीं से भी हो, चाहे कितनी भी सक्षम हो, वो समझती है कि चाहे आप कुछ भी करें, आप काम करेंगी, बाहर जाएंगी, घर पर आकर आपको घर की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। अगर आशा बहुएं काम करती हैं, आंगनवाडी की महिलाएं काम करती हैं, तो वो काम करने के बाद भी घर की जिम्मेदारी, बच्चों की जिम्मेदारी, कौन क्या खाएगा, कैसे हैं सब लोग, ठीक हैं, वो उसकी जिम्मेदारी फिर भी बनती है। इसीलिए एक महिला ही एक महिला के लिए नीतियां बना सकती है, क्योंकि वो समझ सकती है कि महिला किस तरह से संघर्ष कर रही है। जब तक महिलाओं की पूरी भागीदारी राजनीति में नहीं होगी, हम अगर आधी आबादी हैं, तो कम से कम आधी हमारी भागीदारी होनी चाहिए। जो 40 प्रतिशत की भागीदारी हमने कही है, वो एक शुरुआत है। हम चाहते हैं कि आगे बढ़कर जो लोकसभा का चुनाव है, उसमें आधी महिलाएं लड़ें, ताकि आप सबकी आवाज आगे आए। क्योंकि जब तक हम खुद समाज बदलने का नहीं ठानेंगे, हम खुद जिम्मेदारी नहीं लेंगे, तो कोई नहीं करेगा।बहुत इंतजार हो गया है, एक कवि ने भी कहा था, आपने सुना होगा – सुनो द्रोपदी, शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे। सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे। कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुए अखबारों से, कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुए अखबारों से? क्या मतलब है इसका – इसका मतलब है कि तुम्हारी लड़ाई लड़ने के लिए कोई नहीं आ रहा है। तुम कब तक आस लगाओगी कि तुम्हारी आवाज कोई और उठाएगा। कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से – मतलब कि तुम कैसी रक्षा मांग रही हो उन लोगों से, जो तुम्हारी रक्षा करेंगे ही नहीं। जो तुम्हारा अत्याचार कर रहे हैं, जो तुम्हारा शोषण कर रहे हैं। आपने देखा आशा बहुएं मेरे पास आई थी, लखनऊ में कुछ दिनों पहले। उसमें से एक महिला को इतनी बुरी तरह पीटा पुलिस ने, सरकार ने, प्रशासन ने, क्यों – क्योंकि उसने ये हिम्मत कर ली कि उसने पूछा कि तुम मुझे उठाकर क्यों ले जा रहे हो? वो मुख्यमंत्री की सभा में आई थी, अपनी मांगों को लेकर आई थी। सिर्फ अपनी मांगों को उठा रह
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