संवाददाता,नई दिल्लीः साल 2017 की पहली क्रेडिट पॉलिसी और वित्त वर्ष 2016 की आखिरी क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान हो गया है. आरबीआई ने इस बार भी नीतिगत दरों में कटौती नहीं की है. बिना बदलाव के रेपो रेट 6.25 फीसदी पर बरकरार है और रिवर्स रेपो रेपो रेट 5.75 फीसदी पर बरकरार है. वहीं सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) भी 4 फीसदी पर ही पहले की तरह बरकरार है. इससे लोगों की कर्ज सस्ते होने की उम्मीदों को झटका लगा है. हालांकि आरबीआई ने एक अच्छा ऐलान किया जिसमें 13 मार्च से सेविंग खातों से भी कैश निकालने की लिमिट खत्म कर दी गई है.
इधर बैंकों ने पहले ही साफ साफ कहा था कि ग्राहकों के लिए कर्ज की दरें पहले ही कम हो गई हैं इसलिए अब ज्यादा कटौती की उम्मीदें ना रखी जाएं. रेपो रेट में कटौती की उम्मीद के पीछे सबसे अहम कारण था कि दिसंबर में पिछली मौद्रिक नीति के बाद से रिटेल महंगाई घटी है. लिहाजा नोटबंदी के बाद खपत में जो गिरावट आई है उसे सुधारने के लिए रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदे थी पर आरबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया.
क्यों नहीं घटीं दरें?
जानकारों का मानना है कि मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू स्तर पर महंगाई बढ़ने के अनुमान के चलते दरें घटाने से परहेज किया. आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने पॉलिसी के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि नोटबंदी के बाद देश के ईको-सिस्टम पर असर देखा गया है और कुछ समय तक असर बना रहेगा. हालांकि कमेटी सीपीआई महंगाई को 4 फीसदी तक नीचे ले आने के लिए प्रतिबद्ध है. फिलहाल जनवरी-मार्च के दौरान सीपीआई महंगाई 5 फीसदी तक रहने का अनुमान है.
रेपो रेट का असर आप पर कैसे पड़ता है ये समझें
बैंक एक से तीन दिन के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं और इस कर्ज पर रिजर्व बैंक जिस दर से ब्याज वसूलता है, उसे रेपो रेट कहते हैं. अगर रेपो रेट कम होगा तो बैंक को कम ब्याज दर देनी पड़ेगी और इसका फायदा बैंक लोन की ब्याज दरें घटाकर आम आदमी को देता है. वहीं रिवर्स रेपो पर ही बैंक अपना पैसा आरबीआई के पास रखते हैं. यदि आरबीआई रेट कट करता है तो तो बैंकों को कर्ज की दरों में भी कटौती करनी होगी. ज्यादा से ज्यादा बैंक ब्याज दरों में कटौती करेंगे तो ग्राहकों की ईएमआई घटेगी.
साल 2016 की क्रेडिट पॉलिसी में क्या-क्या हुआ
7 दिसंबर 2016
साल 2016 की आखिरी क्रेडिट पॉलिसी में आरबीआई ने किसी भी किस्म कटौती का फैसला नहीं किया और रेपो रेट 6.25 फीसदी पर बरकरार रखा. वहीं रिवर्स रेपो रेट भी 5.75 फीसदी पर बरकरार रखा. आरबीआई ने सीआरआर में भी कोई बदलाव नहीं किया है और ये 4 फीसदी पर कायम रहा. एमएसएफ, बैंक रेट 6.75 फीसदी पर बरकरार रखा गया. इसी पॉलिसी में आरबीआई ने विकास दर के अनुमान को घटाया था. नोटबंदी से पहले 7.6 फीसदी विकास दर का अनुमान था जिसे दिसंबर की क्रेडिट पॉलिसी में घटाकर 7.1 फीसदी किया गया था.
4 अक्टूबर 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
नए आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल ने नीतिगत दरों में 0.25 फीसदी की कटौती का एलान किया. इस तरह, 0.25 फीसदी की कटौती के बाद रेपो रेट 6.5 फीसदी से घटकर 6.25 फीसदी हो गया. वहीं रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी से घटकर 5.75 फीसदी हुआ. सीआरआर 4 फीसदी पर कायम रखा. ऊर्जित पटेल के गवर्नर बनने और मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी बनने के बाद के बाद ये पहली क्रेडिट पॉलिसी थी.
9 अगस्त 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने 9 अगस्त 2016 की क्रेडिट पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया. रेपो रेट बिना बदलाव के 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी रहा. सीआरआर 4 फीसदी पर कायम है. आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की ये आखिरी क्रेडिट पॉलिसी थी वो 4 सितंबर को सेवा से अलग हुए.
7 जून 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया जिससे रेपो रेट 6.5 फीसदी जबकि रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी पर रहा. सीआरआर में कोई बदलाव ना करते हुए इसे 4 फीसदी पर कायम रखा. एमएसएफ यानि मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर भी 7 फीसदी पर बरकरार रही.
5 अप्रैल 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने रेपो रेट 0.25 फीसदी घटाया जिससे रेपो रेट घटकर 6.5 फीसदी हुआ जो जनवरी 2011 के बाद सबसे निचला स्तर था. इसी पॉलिसी में आरबीआई ने अनोखा फैसला लिया कि रेपो रेट और रिवर्स रेपो के बीच फर्क सिर्फ 0.5 फीसदी का रहेगा. इसके तहत रिवर्स रेपो रेट 0.25 फीसदी बढ़कर 6 फीसदी हो गया था. आरबीआई ने एमएसएफ दर 0.75 फीसदी घटाकर 7 फीसदी की और सीआरआर 4 फीसदी पर बरकरार रखा.
2 फरवरी 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
साल 2016 की पहली क्रेडिट पॉलिसी में आरबीआई ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था जिसके बाद रेपो रेट 6.75 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट भी 5.75 फीसदी पर बरकरार रहा. सीआरआर भी 4 फीसदी पर ही बरकरार रहा. मार्जिनल स्टैंडिंग फैसलिटी 7.75 फीसदी पर बरकरार रखी गई.
क्या है क्रेडिट पॉलिसी का महत्व आपके लिए
नीतिगत ब्याज दर वो दर है जिसपर रिजर्व बैंक 1 से तीन दिनों के लिए बैंकों को कर्ज देते हैं. वहीं रिवर्स रेपो पर ही बैंक अपना पैसा आरबीआई के पास रखते हैं. इन्हीं दरों के आधार पर बैंक अपने कर्ज की दरों को घटाते-बढ़ाते हैं जिससे सीधे आपके लोन की ईएमआई पर असर होता है.