संवाददाता, चंडीगढ़: 4 फरवरी टोहाना से विधायक एवं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला ने कहा कि हरियाणा में विरोधी पार्टियों के नेता पूर्ण बहुमत से बनी भाजपा सरकार को सहन नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए वे आरक्षण की आड़ में आंदोलन करवाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम कर रहे हैं, जबकि प्रदेश की सभी प्रमुख खापें पूरी तरह से प्रदेश सरकार के साथ रहकर आंदोलन का विरोध कर रही हैं। जाट आरक्षण में खुलकर सामने आने से कांग्रेस और इनेलो पार्टियों का जनविरोधी चेहरा भी सबके सामने आ गया है। आरक्षण से इनका कोई वास्ता नहीं है। ये पार्टियां हरियाणा में शांति व अमन-चैन को बर्बाद करना चाहती हैं ,जिसका जवाब उन्हें चुनावों में जनता देगी। श्री बराला आज टोहाना में किसान विश्राम गृह में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे।
सरकार जो कर सकती थी, किया :
श्री बराला ने कहा कि पिछले साल हुए जाट आंदोलन के समय प्रदेश सरकार ने जो वादे किए थे, उन सभी को तय समय में पूरा किया है। विधानसभा में कानून बनाकर जाटों सहित पांच जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया। वह मामला उच्च न्यायालय में चला गया ,जिसकी पैरवी भी सरकार द्वारा मजबूती से की जा रही है। इसके अलावा जाट नेताओं की मांगों के अनुरूप प्रदेश सरकार ने सभी मृतकों के परिजनों को मुआवजा दिया और उनके आश्रितों को नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू की है। अपनी सीमा में रहकर सरकार जो कर सकती थी, उसने किया है। लेकिन कुछ बाहरी और विपक्षी नेता हठधर्मिता करते हुए प्रदेश के जाटों को भडक़ा रहे हैं और प्रदेश का अमन-चैन खराब करना चाहते हैं। ये खापों को मोहरा बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं।
आरक्षण की नहीं, राजनीति की लड़ाई :
उन्होंने कहा कि यशपाल मलिक ने जिस प्रकार सोनीपत में कहा कि पड़ोसी राज्यों के चुनाव में भाजपा को हरवाने का प्रयास करेंगे और जिस प्रकार एक दिन पहले कांग्रेस व इनेलो ने आंदोलन को समर्थन दिया है, उससे आसानी से समझा जा सकता है कि विरोधी पार्टियां जाट आंदोलन की आड़ में भाजपा को घेर रही हैं। यह आरक्षण की नहीं, राजनीतिक लड़ाई हो गई है ,जिसे प्रदेश की 2.5 करोड़ जनता अच्छी तरह समझ रही है। पिछले साल कांग्रेस व इनेलो ने सर्वदलीय बैठक में सरकार को सहयोग देने का भरोसा दिलाया था,लेकिन दोनों पार्टियों ने आज तक जाट आरक्षण के संबंध में एक भी सुझाव सरकार को नहीं दिया जिससे उनकी मंशा स्पष्ट हो जाती है। सरकार द्वारा राय मांगने के बावजूद कांग्रेस व इनेलो ने कभी साकारात्मक जवाब नहीं दिया। यही नहीं, इनेलो व कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में कभी जाट आरक्षण के संबंध में गंभीर प्रयास नहीं किए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए आधी-अधूरी तैयारी के साथ आरक्षण देने का दिखावा किया था। उन्होंने कहा कि 25 जनवरी को सोनीपत में हजारों की संख्या में जाट नेताओं व खाप पंचायतों ने फैसला लेकर अगले दिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात की और आंदोलन न करने पर सहमति बनाई लेकिन फिर भी कुछ बाहरी लोग राजनीतिक स्वार्थ के चलते इस मुद्दे को सुलगाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
खापों का महत्व सदियों से :
उन्होंने जनता के साथ-साथ सर्वजातीय खापों से भी अपील की कि वे तथाकथित जाट नेताओं तथा विरोधी राजनीतिक नेताओं की मंशा को समझें और जाट आंदोलन से दूर रहकर प्रदेश में शांति व भाईचारा कायम रखें। हरियाणा में खापों का महत्व सदियों से रहा है जिसकी देश-विदेश में मिसालें भी दी जाती हैं। आज तक कभी 36 बिरादरी का भाईचारा खराब नहीं हुआ लेकिन अब कुटिल नेताओं की घृणित राजनीति अमन-चैन को खत्म करना चाहती है। दंगा भडक़ाने वाला किसी जाति का नहीं होता है। गलत मंशा रखने वाले नेताओं को जनता अब पहचानने लगी है।
मुकदमा वापस लेने का एक भी आवेदन नहीं आया :
पिछले साल आंदोलन के दौरान दर्ज हुए मुकदमों को वापस लेने के सवाल पर श्री बराला ने कहा कि आज तक सरकार के पास ऐसा एक भी आवेदन नहीं आया ,जिसमें कहा गया हो कि फलां व्यक्ति निर्दोष है और जांच करके उसके खिलाफ मुकदमा खारिज किया जाए। यदि सरकार के पास ऐसे आवेदन आते हैं तो इन पर विचार किया जा सकता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि दोषियों को बख्श दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आरक्षण के संबंध में जाट नेताओं से बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले हैं। सरकार साकारात्मक तरीके से इस मामले का समाधान करना चाहती है। लेकिन उपद्रव करके माहौल खराब करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा इसके लिए प्रशासनिक व सुरक्षा बलों की पूरी तैयारियां भी हैं।
अमन-चैन बनाने का आह्वान किया :
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे आरक्षण आंदोलन के नाम पर राजनीति करने वालों को पहचानें और इनके हाथों का मोहरा न बनें बल्कि आंदोलन से दूर रहकर प्रदेश में अमन-चैन बनाए रखने में सरकार का सहयोग करें। जब प्रदेश सरकार आरक्षण के लिए अदालत में मजबूती से पैरवी कर रही है और आंदोलनकारियों की सभी मांगें मान रही है तो सरकार पर बेवजह दबाव बनाने का कोई औचित्य नहीं है।