अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
जयराम रमेश ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी आपको संबोधित करेंगे: डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मैं आपके समक्ष विनम्रता से कहना चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी की, राहुल गांधी की नीति हमेशा बड़ी स्पष्ट रही है, खुले रूप से आप जितना भी कोशिश कर लो डराने की, धमकाने की, आवाज को रोकने की, झूठे केस फाइल करने की, उससे आवाज दबने वाली नहीं है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, जो ज्वलंत मुद्दे हैं इस देश के, उनके विषय में राहुल गांधी बोलते रहेंगे, आवाज उठाते रहेंगे। मैं जानता हूं कि ये निर्णय आया है एक 2019, कोलार में बेरोजगारी, कीमतों की बढ़ोतरी के दौरान कहे हुए कुछ शब्दों की स्पीच के दौरान। अब इस निर्णय के बारे में मैं आपको तीन-चार चीजें बताना चाहता हूं। मैं कहने से पहले आपको ये बता दूं कि ये निर्णय करीब 170 पन्ने का है, गुजराती में है। मैं गलती नहीं करना चाहता, स्पष्टता और एक्यूरेसी के विषय में, पूरी तरह से हमारे पास अनुवाद भी नहीं है, लेकिन मोटा-मोटा आपको मैं बता रहा हूं, इसमें अगर कुछ संशोधन होगा, तो आपसे कल-परसों में बात करेंगे।
नंबर एक- मानहानि के विषय में एक सिद्धांत कानून का मूल सिद्धांत है और वो ये है कि आपको किसी स्पष्ट व्यक्ति या स्पष्ट चीज के विषय में मानहानि करनी चाहिए, आरोपित रूप से कम से कम। आप मानहानि एक मोटे-मोटे, बड़े-बड़े मुद्दे के विषय में नहीं कर सकते। एक ऐसे विषय के बारे में जिसमें स्पष्टता नहीं है, एक व्यक्ति विशेष के विरुद्ध आक्षेप नहीं है और अगर वो आरोप वेग (अस्पष्ट) हैं, ज्यादा ब्रॉड हैं, बहुत बड़े एक हिस्से को, जनसंख्या को लेते हैं अपने आरोपों में, तो उसको मानहानि नहीं कह सकते।
नंबर दो – उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण। जिस वाक्य के विषय में चुनौती दी गई है कानून द्वारा, उस वाक्य के विषय में किसी भी उन व्यक्तियों ने कोई भी शिकायत फाइल नहीं की है, जिसके संबंध में वो वाक्य कहा गया है। जो भी नाम लिए गए हैं, जो भी चीजें कही गई हैं, उनमें से किसी व्यक्ति ने कोई शिकायत फाइल नहीं की है। वो भी मानहानि के कानून का एक बहुत अभिन्न अंग है कि जिसकी मानहानि हुई है, उसको ही शिकायत फाइल करनी होती है और उसको बताना होता है कि किस प्रकार अमुक व्यक्ति के कहने से इस व्यक्ति की मानहानि हुई है। ये शिकायत उनमें से किसी व्यक्ति द्वारा नहीं है।
नंबर तीन- जब फौजदारी मुकदमा करते हैं जो किया गया है इस केस में, तो एक गलत नीति द्वेष की भावना सिद्ध करना अति आवश्यक है। कोलार की अगर आप स्पीच देखेंगे, तो वो जनहित के बारे में है, राजनीति के बारे में है, कीमतों की बढ़ोतरी के बारे में है, बेरोजगारी के बारे में है। उसके दौरान अगर ये वाक्य, जिसको आज आपत्तिजनक माना गया है, जिसको अभी चुनौती दी जाएगी ऊपरी अदालतों में, तो भी कोई ये नहीं कह सकता कोई भी कि द्वेष की भावना से, बदमिजाजी से, जानबूझकर, जिसको मेलाफाइडेंट कहते हैं, मैलिस कहते हैं कानून में, ये एक अनिवार्य अंग है इस आरोप का और जब तक ये साबित नहीं होता पूरे संदर्भ से, तब तक आप नहीं कह सकते कि ये ऑफेंस बना है, ये पूरी तरह से इस केस में साबित नहीं हो सकता क्योंकि वाक्य, संदर्भ एकदम अलग था।
चौथा और ये चीजें अभी जैसा मैंने कहा उसके डीटेल्स चेक करने हैं, लेकिन अभी तक जो उनको तथ्य मिले हैं, उसके अनुसार ये मामला काफी अर्से तक एक मजिस्ट्रेट मिस्टर एक्स के सामने था। जब वो वहाँ था, तो याचक ने, कंपलेनर ने बड़े कोर्ट में, हाईकोर्ट में जाकर इस पूरी प्रक्रिया का स्टे ले लिया, रुकवा लिया उसको काफी अर्से तक, कई महीनों तक। जब उस व्यक्ति का स्थानांतरण हुआ, उस औहदे से हट गए, तो ये याचिका जो ऊपरी अदालत में डाली गई, उसको विदड्रॉ कर लिया गया और वापस नीचे आ गई एक भिन्न मजिस्ट्रेट के सामने, जहाँ से अब ये निर्णय आया है। तो इसकी तारीखें, इस प्रक्रिया को भी हम गौर से देखेंगे कि एक ठीक प्रकार से ये न्याय प्रक्रिया हुई है या नहीं। लेकिन प्राथमिक दृष्टि से ये चौथा मुद्दा अभी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पांचवा- एक प्रावधान है कानून में, उसको 202 कहते हैं। 202 विशेष रूप से बनाया गया है उनके लिए कि अगर वारदात हुई कोलार में और आपने आकर त्रिवेंद्रम में शिकायत फाइल कर दी। वारदात हुई कोलार में और आपने आकर श्रीनगर में शिकायत फाइल कर दी, तो कोई भी मजिस्ट्रेट उसकी शुरुआत करने से भी पहले, निर्णय तो बहुत बाद की बात है, शुरुआत करने से भी पहले एक जांच करेगा कि ये पूरी तरह से आउट ऑफ ज्यूरिस्डिक्शन है या ज्यूरिस्डिक्शन के अंदर यानी अधिकार क्षेत्र के अंदर है कि नहीं है। 202 का इसमें सीधा उल्लंघन हुआ है। सूरत के मजिस्ट्रेट ने जिस आसानी से इस मामले में आगे बढ़ोतरी की है और फिर निर्णय दिया है कोलार वाले वक्तव्य के विषय में, वो अत्यंत आपत्तिजनक है कानूनी रूप से और क्विश्चनेबल है, जिसका कि हम विश्लेषण करेंगे।
छठा- ये भी सुनने में आया है और जहाँ तक तथ्य हमारे पास हैं और ये भी हम चैक करेंगे, आप जानते हैं कि कनविक्शन के बाद सेंटेंसिंग, दंड के लिए अलग से हियरिंग होल्ड करनी पड़ती है। वो अलग से हियरिंग जरूर हुई, लेकिन 15-20 मिनट की हियरिंग के बाद जो सबसे ज्यादा सेंटेंस हो सकता है, वो दिया गया, दो वर्ष। वो प्रक्रिया भी कि किस हद तक सही है या गलत है, उसको भी देखा जाएगा।
इन सबका मूल निचोड़ क्या है – मूल निचोड़ ये है कि जानबूझकर गलत केस को थोपकर आवाज को रोकना, बंद करना, डराना, धमकाना ये प्रक्रिया ये सरकार भिन्न-भिन्न रूप से कर रही है। साथ-साथ इससे कहीं ज्यादा आपत्तिजनक वक्तव्य दिन-प्रतिदिन इनके द्वारा, इनके मंत्रियों द्वारा, इनके वरिष्ठ नेताओं द्वारा, इनके कार्यकर्ताओं द्वारा अनदेखा, अनसुना कर दिया जाता है। लेकिन इस भय से अगर वो सोचते हैं कि किसी रूप से जनहित के मुद्दों को उठाने में कांग्रेस हिचकेगी या राहुल गांधी हिचकेंगे, तो ये गलत धारणा है।
जैसा मैंने कहा कि ये एक पहला निर्णय है, सबसे निचले दर्जे का निर्णय है, जो कि हमारी न्यायिक व्यवस्था में सबसे निचला दर्जा होता है मजिस्ट्रेट का, उसके बाद सेशन कोर्ट ले जाएंगे इसको, उसके ऊपर भी कई अदालते हैं। ये गलत निर्णय हैं, कानून में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता और हम आश्वस्त हैं कि जल्द से जल्द इस विषय में हमारे पास एक सकारात्मक निर्णय आएगा।