अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
सीपीपी बैठक में सीपीपी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के भाषण
सेंट्रल हॉल, पीएच – बुधवार, 21 दिसंबर 2022
(केवल संदर्भ हेतु)
खरगे जी,
अधीर जी,
सहयोगी सांसदगण,
सर्वप्रथम मैं अपनी बात की शुरूआत मल्लिकार्जुन खरगे का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए करती हूं। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर यह उनकी पहली सीपीपी बैठक है। हम उनके कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन की आशा करते हैं। हम ऐसे समय में मिल रहे हैं, जब हमारा देश मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, सामाजिक ध्रुवीकरण, लोकतांत्रिक संस्थानों का कमजोर होना और बार-बार सीमा पर घुसपैठ जैसी आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। प्रमुख विपक्षी दल के रूप में, हमारी एक बड़ी जिम्मेदारी है और हमें इसे पूरा करने के लिए स्वयं को मजबूत और पुनः प्रतिबद्ध करना जारी रखना होगा।
सरकार के बार-बार के इन दावों के बावजूद कि सब कुछ सामान्य है,आर्थिक स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि जारी है, जिस के कारण करोड़ों परिवारों पर असहनीय बोझ पड़ रहा है। विशेषकर युवाओं के लिए रोजगार मुहैया कराने में असमर्थता इस सरकार के कार्यकाल की विशेषता रही है। भले ही प्रधान मंत्री ने कुछ हज़ार लोगों को नियुक्ति पत्र सौंपे हों, लेकिन करोड़ों लोग सरकार द्वारा खाली पदों को न भरने के कारण अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं, सरकार द्वारा ली जा रही परीक्षाएं अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं और सार्वजनिक उपक्रमों का धड़ल्ले से निजीकरण किया जा रहा है। छोटे व्यवसाय, जो देश में बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन करते हैं, नोटबंदी के बार-बार के झटकों, खराब तरीके से लागू की गई जीएसटी और कोविड महामारी के कुप्रबंधन के बाद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विशेष रूप से बढ़ती उर्वरकों की कीमतों के कारण बढ़ती उत्पादन लागत, फसलों के लिए मिलने वाली अनिश्चित कीमत और विषम मौसम परिस्थितियों के कारण किसान का जीवन कठिन हो गया है। तथापि, तीन कृषि कानूनों को बलात् लागू करने के विवेकहीन प्रयास के बाद किसान अब सरकार की प्राथमिकता प्रतीत नहीं हो रहे हैं।
चीन द्वारा हमारी सीमा पर लगातार घुसपैठ गंभीर चिंता का विषय है। पूरा देश हमारे चौकस जवानों के साथ खड़ा है, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में इन हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया है। हालाँकि, सरकार इस मुद्दे पर संसद में चर्चा न कराने पर अड़ी हुई है। इसके परिणामस्वरूप, संसद, राजनीतिक दल और लोग जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ हैं।
हमारे देश में यह परंपरा रही है कि अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय चुनौती का सामना करते हुए संसद को विश्वास में लिया जाए। इस मुद्दे पर संसद में बहस कई महत्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डाल सकती है। चीन बार-बार हम पर आक्रमण करने का दुस्साहस कर रहा है, भविष्य में चीन की घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार की क्या नीति है? इन तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए कि चीन के साथ हमारा निर्यात आयात की अपेक्षा लगभग नगण्य है, ऐसे में हम चीन की सैन्य आक्रामकता का जवाब आर्थिक प्रतिक्रिया के रूप में क्यों नहीं दे रहे? इस मुद्दे पर वैश्विक समुदाय के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए सरकार का क्या कूटनीतिक प्रयास है? खुले मन से किया गया विचार-विमर्श राष्ट्र की प्रतिक्रिया को सबल बनाता है। आज की परिस्थितियों में सरकार का यह कर्तव्य है कि वह जनता को वस्तुस्थिति से अवगत कराए और अपनी नीतियों और कार्याविधियों को स्पष्ट करे।
इस तरह के गंभीर राष्ट्रीय चिंता के मुद्दे पर संसद में बहस की अनुमति देने से इनकार करना, लोकतंत्र के प्रति अनादर की भावना को परिलक्षित करता है और सरकार के इरादों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। यह दृष्टिकोण राष्ट्र को एक साथ लाने में सरकार की अक्षमता को प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, विभाजनकारी नीतियों का पालन करके, घृणा फैलाकर और हमारे समाज के कुछ वर्गों को लक्षित करके, सरकार विदेशी खतरों के समक्ष देश के एकजुट होकर खड़े होने को मुश्किल बना देती है। इस तरह की विभाजनकारी नीतियां हमें कमजोर बनाती हैं और परिस्थितियों का सामना करने के प्रति हमारी क्षमताओं का ह्रास करती हैं। ऐसे समय में सरकार का प्रयास और जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह हमारे लोगों को एकजुट करे, न कि उन्हें विभाजित करे, जैसा कि वह पिछले कई वर्षों से करती आ रही है।
दुर्भाग्य से, गंभीर चिंता के मामलों पर चुप्पी इस सरकार के कार्यकाल की परिभाषित विशेषता बन गई है। संवाद के सभी विकल्पों को अवरुद्ध करते हुए वर्तमान सरकार प्रतिपक्ष और उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाली आवाजों पर प्रहार करने, मीडिया का दुरुपयोग करने, सांविधिक संस्थाओं को कमजोर करने में सक्रिय रूप से संलग्न है। यह प्रक्रिया न केवल केंद्र स्तर पर जारी है, बल्कि हर उस राज्य में इस प्रक्रिया का घोर अनुपालन हो रहा है, जहाँ-जहाँ सत्ताधारी पार्टी की सरकार है। न्यायपालिका को अस्वीकार्य बनाने के लिए सुनियोजित प्रयास एक परेशान करने वाला नया घटनाक्रम है। मंत्रियों, यहाँ तक कि उच्च पदों पर बैठे संवैधानिक प्राधिकारियों को न्यायपालिका पर विभिन्न आधारों पर अपने भाषणों द्वारा आक्रमण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इस तरह के प्रयास उचित सुझाव देने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह आम जनमानस की नजरों में न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने का प्रयास है। यद्यपि हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में गुजरात और दिल्ली के परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रहे, लेकिन कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रही। मैं हिमाचल प्रदेश में अपने सहयोगियों को उनकी जीत के लिए बधाई देती हूं। अब हिमाचल की जनता से किए गए वादों को पूरा करने का समय आ गया है। राहुल गांधी के नेतृत्व में जारी भारत जोड़ो यात्रा गर्व की बात है। यह लोगों से सीधा संपर्क स्थापित करने का एक अनूठा ढंग है, जो कांग्रेस पार्टी के संदेश को जन-जन तक ले जाएगा और इसके प्रत्युत्तर में उनकी समस्याओं और आकांक्षाओं को समझने में सहायक होगा। दक्षिण और उत्तर में; शहरों, कस्बों और गांवों में; ठंड, बारिश और गर्मी में; लाखों पुरुष, महिलाएं और बच्चे इस यात्रा में शामिल हुए हैं। मैं हर उस भारतीय को धन्यवाद देती हूं, जिसने इस यात्रा को अपना समर्थन दिया तथा इस यात्रा द्वारा प्रचारित और प्रसारित भाईचारे और समानता के संदेश को आगे बढ़ाया। मैं राहुल जी को उनके साहस और दृढ़ संकल्प के लिए धन्यवाद देती हूँ। मैं उन सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देती हूं, जिनके अथक प्रयास से इस यात्रा को अभूत पूर्व सफलता मिल रही है। इस यात्रा के प्रति लोगों के उत्साह से यह स्पष्ट है कि अधिकांश भारतीय शांति, सद्भाव तथा सामाजिक और आर्थिक समानता चाहते हैं। मैं आशा करती हूँ कि इस यात्रा से प्राप्त ऊर्जा और शक्ति के आधार पर आगे बढ़ते हुए हम लोगों के साथ संवाद जारी रखना सुनिश्चित कर सकते हैं। हाथ से हाथ जोड़ो अभियान की घोषणा पहले ही की जा चुकी है। मुझे आशा है कि हम कांग्रेस के पुरुष और महिला कार्यकर्ता के रूप में आंदोलन और अन्य अभियानों में शामिल होंगे और भारत के लोगों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करेंगे।