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दिल्ली राजनीतिक राष्ट्रीय हाइलाइट्स

संसद सदस्य, महासचिव (संचार) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,जयराम रमेश द्वारा जारी बयान

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली:आज धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती है। वह भारत के सबसे महान सपूतों में से एक और स्वशासन एवं सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री इस अवसर पर बिहार के जमुई में आदिवासियों के हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार आदि वासियों को न्याय से वंचित करने के लिए पूरी ताकत से लगी हुई है। धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, DAJGUA उनके इसी पाखंड को दर्शाता है। यह है तो भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर है, लेकिन वन अधिकार अधिनियम का पूरी तरह से मजाक बनाता है।
डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम, FRA (2006) एक क्रांतिकारी कानून था –
● इसने वनों से संबंधित शक्ति और अधिकार वन विभाग से ग्राम सभा को हस्तांतरित किया था।
● जनजातीय मामलों के मंत्रालय को कानून लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में सशक्त बनाया गया।
● FRA ने आदिवासी समुदाय और ग्राम सभाओं को वनों पर शासन और प्रबंधन करने का अधिकार दिया। वनों में लोकतांत्रिक शासन को सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सुधार था। लेकिन इस क्रांति के बाद नरेंद्र मोदी की प्रति-क्रांति आई है। DAJGUA मूल रूप से इस ऐतिहासिक कानून और वनों के प्रशासन में लोकतांत्रिक सुधार को खत्म करता है।
● यह FRA के कार्यान्वयन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अधिकार देकर जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकार को कमजोर करता है।
● FRA के वैधानिक निकायों, अर्थात ग्राम सभा, उप-विभागीय समिति, ज़िला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय निगरानी समिति को सशक्त बनाने के बजाय, DAJGUA ने जिला और उप-विभागीय स्तर पर FRA की इकाइयों का एक समानांतर विशाल संस्थागत तंत्र बनाया है और उन्हें बड़े स्तर पर फंड्स और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों से लैस किया गया है। वे सीधे जनजातीय मामलों के मंत्रालय और राज्य जनजातीय कल्याण विभागों के सेंट्रलाइज्ड नौकरशाही के नियंत्रण के अधीन हैं, FRA के वैधानिक निकायों के प्रति उनकी जवाबदेही नहीं है।
● DAJGUA राज्य जनजातीय कल्याण विभागों द्वारा ग्राम सभाओं के FRA कार्यान्वयन और CFR प्रबंधन गतिविधियों के लिए तकनीकी एजेंसियों/डोमेन विशेषज्ञों/कॉर्पोरेट गैर सरकारी संगठनों को सूचीबद्ध करता है और साथ लेता है। FRA की इन इकाइयों को ऐसे काम करने हैं जिन्हें वैधानिक निकायों को कानून द्वारा करना आवश्यक है, इन वैधानिक निकायों को इन FRA इकाइयों के उप अंग के रूप में छोड़ दिया गया है, FRA के इन इकाइयों को नाममात्र के FRA निकायों का आदेश मानने तक सीमित कर दिया गया है है। इसमें शामिल आर्थिक और सामाजिक संवेदनशीलता पर ध्यान दिए बिना ऐसा किया गया है, जबकि इसके लिए भारी भरकम बजट आवंटित किया गया है (प्रत्येक CFR के लिए तकनीकी एजेंसियों के लिए 1 लाख रुपए)। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में, भाजपा सरकार ने वनमित्र ऐप बनाने के लिए महाराष्ट्र नॉलेज कंपनी लिमिटेड (MKCL) को नियुक्त किया, जिसने FRA क्लेम करने की पारदर्शी प्रक्रिया को एक अस्पष्ट, ऑनलाइन प्रक्रिया में बदला है और इसकी जिम्मेदारी तकनीकी ऑपरेटरों ने संभाली है। परिणामस्वरूप तीन लाख क्लेम्स खारिज कर दिए गए। ऐसी तकनीकी एजेंसियों की संलिप्तता के कारण बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं होने से आदिवासी समूह चिंतित हैं। उनकी चिंता वाजिब भी है।
● वन विभाग को अब सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा की अपनी ही समिति का हिस्सा बनने की अनुमति दी गई है- जो FRA का सीधा उल्लंघन है। FRA को आदिवासी और वन में रहने वाले अन्य समुदायों को अपने संसाधनों पर शासन और प्रबंधन हेतु सशक्त बनाने के लिए लाया गया था। DAJGUA, विशुद्ध रूप से मनुवादी तरीके से, इन समुदायों को केवल जंगल में रहने वाले वनवासियों के रूप में देखता है जो अपने आप में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बजाय सिर्फ़ श्रमिक हैं। जैसा कि 12 मार्च, 2024 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा जारी किए गए आदिवासी संकल्प में कहा गया है, कांग्रेस पार्टी ईमानदारी और पूरी निष्पक्षता के साथ FRA के कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। यह झारखंड और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में लोगों को दी गई हमारी गारंटी का हिस्सा है, और आगामी विधानसभा एवं संसदीय चुनावों के लिए भी यह प्राथमिकता बनी रहेगी।

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