अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
जयराम रमेश, संसद सदस्य, महासचिव (संचार), एआईसीसी द्वारा जारी वक्तव्य: हमने 17 दिसंबर, 2022 को प्रधानमंत्री से चीन पर 7 प्रश्न पूछे थे। जैसा कि अपेक्षित था, उनका कोई उत्तर हमें नहीं मिला, और इसके बाद 18 दिसंबर, 2022 को हमने उनसे 5 प्रश्न पूछे। आज हम प्रधानमंत्री से 5 और प्रश्न पूछ रहे हैं जिन पर देश उनकी प्रतिक्रिया और उत्तर जानना चाहता है।
1. कुछ समय पहले आपने एक नया नारा दिया था “इंच टूवर्ड्स माइल्स”, जिसमें इंच (INCH) से तात्पर्य “भारत-चीन” और माइल्स (MILES) से तात्पर्य “असाधारण ऊर्जा की सहस्राब्दी” (मिलेनियम ऑफ़ एक्सेप्शनल एनर्जी) था। फिर हमने देखा कि चीनी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में हमारे क्षेत्र के हज़ारों वर्ग मील पर कब्जा करने के लिए ही उस असाधारण ऊर्जा का प्रयोग कर रहे हैं। क्या आप इस बात से सहमत हैं कि आपके बचकाना और त्रुटिपूर्ण निर्णय की देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है?
2. आपने अपनी घरेलू छवि बरकरार रखने के लिए, अपने सभी प्रयासों को व्यक्तिगत कूटनीति और विश्व के प्रमुख नेताओं के साथ मजबूत संबंधों के दिखावे में झोंक दिया है। अपने ‘दोस्त’ राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आप अहमदाबाद में झूले में झूले, वुहान में चाय का कप साझा किया और बाली में हाथ मिलाया। अक्टूबर 2019 में आपने फिर से ‘शी’ से मुलाकात के बाद घोषणा की कि “चेन्नई विजन, भारत-चीन संबंधों में एक नए युग का सूत्रपात करेगा” और यह भी कहा कि “दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक संवाद बढ़ा है।” छह महीने बाद चीनी देपसांग से डेमचोक तक अपने रणनीतिक इरादे स्पष्ट कर रहे थे, जबकि आप पूरी तरह से वास्तविकता को स्वीकार करने से इंकार कर रहे थे। क्या आपकी व्यक्तिगत कूटनीति पूरी तरह खोखली साबित नहीं हुई है? क्या व्यक्तिगत छवि निर्माण का आपका जुनून राष्ट्रहित के साथ समझौता नहीं है?
3. क्या यह सच है कि जब 2015 में आईएनएस (INS) विक्रमादित्य पर संयुक्त कमांडर सम्मेलन में तीनों सशस्त्र सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों ने आपको स्पष्ट रूप से ये बताया था कि वे चीन को भारत के लिए प्रमुख सैन्य खतरा मानते हैं, तो आपका उत्तर था: “मेरा मानना है कि चीन से भारत को कोई भी सैन्य खतरा नहीं है”? क्या यह दृष्टिकोण उपलब्ध साक्ष्यों के समक्ष आपके मतिभ्रम और अति उत्साह को नहीं दर्शाता है?
4. 2020 की शुरुआत में चीनी घुसपैठ एक रणनीतिक आश्चर्य था, जिसके लिए हम तैयार नहीं थे। पिछली बार हमें इसी तरह के सैन्य आश्चर्य का सामना 1999 में कारगिल युद्ध में करना पड़ा था। ऐसा क्यों है कि बीजेपी सरकारें, जो सदैव राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़े रहती हैं, अक्सर इस तरह के आश्चर्य का शिकार बन जाती हैं? क्या इसलिए कि देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपेक्षा राजनीति करने और विपक्ष पर हमला करने में उनकी ज़्यादा रुचि रहती है? हमारे पास चीन के इस आश्चर्य की समीक्षा का विवरण कब उपलब्ध होगा, जैसा कारगिल युद्ध के बाद किया गया था?
5. अनेक लोगों ने इस वास्ताविकता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि आप हमारे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी चीन का नाम लेने से भी कितना डरते हैं। पूर्व अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर, जो 2017-21 के महत्वपूर्ण कालखण्ड के दौरान भारत में अमेरिका के राजदूत थे, ने कहा कि आपकी (भारत) सरकार ने चीन का नाम लेना तो दूर, अमेरिका से भी अपने बयानों में सीमा पर चीन की आक्रामकता का उल्लेख न करने के लिए अनुरोध किया था। क्या अंतर्राष्ट्रीय जनमत को अपने पक्ष में लाना इससे बेहतर नहीं होता? आपने अपने अहंकार के लिए हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में क्यों डाला?