अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
हरियाणा की वो जमीन जिसे पीएलपीए के अंतर्गत माना जा रहा है और उस जमीन को पहले तो सरकार ने फॉरेस्ट की जमीन बता कर खोरी गांव में बसे हजारों परिवारों को उजाड़ दिया। किंतु हरियाणा के फार्म हाउस के बेदखली की बात आई तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में यह बहस शुरू कर दी कि पीएलपीए कभी भी फॉरेस्ट लैंड नहीं रही।
मजदूर आवास संघर्ष समिति के राष्ट्रीय कन्वीनर निर्मल गोराना ने बताया कि यह मामला आज सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस खानविलकर की बेंच ने सुना। एडवोकेट विकास ने विस्तृत रूप से कोर्ट में बताया कि पीएलपीए की जमीन को सरकार ने कभी भी जंगलात की जमीन नहीं माना। आज फिर से कई अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में खोरी गांव से बेदखल हुए परिवारों के आवास के बारे में मामला छेड़ना चाहा किंतु कोर्ट ने इस मामले को सुनने से बिल्कुल इनकार कर दिया और कहा कि सीधे नगर निगम के पास जाकर अपनी दरखास्त वहां लगाइए। निर्मल गोराना ने बताया कि खोरी से विस्थापित हुए मजदूर परिवारों द्वारा नगर निगम फरीदाबाद में दस्तावेज जमा करवाने के बावजूद भी कोई पत्र नगर निगम की ओर से नहीं मिला है। और जिन परिवारों को आवास से संबंधित पत्र मिला है उनको आवास की सुविधा अभी तक मुहैया नहीं हुई है और ना ही उनके किराए के बारे में इसी प्रकार का कोई जिक्र नगर निगम द्वारा किया जा रहा है। डबुआ कालोनी और बापू कॉलोनी में जो आवास निर्मित किए गए हैं वह रहने योग्य नहीं है जिस पर नगर निगम चुप्पी साध कर बैठा है। निर्मल गोराना का कहना है कि मजदूर आवास संघर्ष समिति विस्थापित मजदूर परिवारों के आवास के मुद्दे को लेकर फिर से नगर निगम का दरवाजा खटखटायेगी और यदि सफलता न मिली तो सुप्रीम कोर्ट जाने से भी पीछे नहीं हटेगी। फार्म हाउस का मामला फिर से 17 दिसंबर 2021 शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा और खोरी से विस्थापित हुए मजदूर परिवारों के आवास का मामला शीतकालीन अवकाश के बाद में सुप्रीम कोर्ट में फिर से आएगा।