अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि जो रेकलेस प्राइवेटाइजेशन कहा जाता है, अंधा-धुंध निजीकरण, बिना सोचे-समझे सरकारी संस्थानों को बेचने का जो काम है, उस कड़ी में एक नया अध्याय जोड़ने का काम भारतीय जनता पार्टी करने जा रही है और इसलिए मुझे लगता है कि बीजेपी को अपना नाम बदल कर ‘बेचे जाओ पार्टी’ कर लेना चाहिए और ये कारण है कि हम इसे बेचे जाओ पार्टी बुला रहे हैं।
अब पता चला है कि सरकार ने ये निर्णय लिया है कि जिन सरकारी बैंकों को वो बेचेगी, उसमें से पूरी तरह अपना शेयर बेचकर निकल जाएगी। ये वो सरकारी बैंक हैं, जिनमें पहले 51 प्रतिशत होना चाहिए, फिर बात हुई 26 प्रतिशत स्टेक हो, अब ये बात है कि सरकारी बैंकों को पूरी तरह से बेच दो। ये नया अध्याय है रेकलेस प्राइवेटाइजेशन, अंधा-धुंध निजीकरण में और इसके बहुत ही मुश्किल और खतरनाक परिणाम होने वाले हैं। बैंकों का जब नेशनलाइजेशन हुआ 1969 में, मुझे लगता है आजाद भारत में इकोनॉमिक पॉलिसी में सबसे बड़ा और शायद सबसे साहसी निर्णय इंदिरा जी ने लिया था। कुछ निजी व्यक्तियों के चंगुल से बैंकिंग को निकाला गया, निजी हाथों से और पब्लिक सेक्टर बैंक बनाए गए क्योंकि ये सिर्फ आर्थिक संस्थान नहीं हैं,
ये सामाजिक न्याय का, सामाजिक एंपावरमेंट का एक टूल बने, एक जरिया बने, देश के उन इलाकों में जहाँ पर प्राइवेट बैंक आज भी झांकने नहीं जाना चाहते हैं, वहाँ पर आपको पब्लिक सेक्टर बैंक की शाखा जरुर मिलेगी, चाहे कृषि हों, लघु मध्यम उद्योग हों, मछुवारे हों, कॉटेज इंडस्ट्री हो, इनको ऋण देने में प्राइवेट सेक्टर बैंक आज भी कतराते हैं। उनको प्रायोरिटी लैंडिग पर ऋण देने का काम, कर्जा देने का काम, सहायता करने का काम पब्लिक सेक्टर बैंक ने किया।
पिछड़े क्षेत्रों के विकास में इन्होंने मदद की फंड देकर, तो पब्लिक सेक्टर बैंकों को सिर्फ एक आर्थिक संस्थान के रुप में नहीं, सामाजिक न्याय, सामाजिक सशक्तिकरण का एक माध्यम बनाकर देखना पड़ेगा और उससे पल्ला झाड़ लेना सिर्फ एक अनैतिक और गैर जिम्मेदार सरकार कर सकती है। लेकिन ये जो परंपरा है, बेच डालो, सेल लगा दो, फायर सेल लगती है, वो कर दो, इंडिया ऑन सेल कर दो, बेचे जाओ पार्टी की ये जो परंपरा है, ये उसके डीएनए का पार्ट बनता जा रहा है और ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है, पिछले दो महीने में ही उठाकर देख लीजिए क्या-क्या किया है। इस देश के हर व्यक्ति को किसी चीज पर विश्वास हो ना हो, एलआईसी पर विश्वास जरुर होता है और उसकी लाइन भी है जिंदगी के बाद भी, जिंदगी के साथ भी।
एलआईसी जैसे ऑर्गेनाइजेशन का गलत लिस्टिंग करना, गलत समय पर लिस्टिंग करना ये परिमाण है कि एलआईसी का वैल्यू करीब 18 बिलियन डॉलर समाप्त हो चुका है, नष्ट हो चुका है। ये उसके वैल्यूएशन का एक तिहाई हिस्सा है, इसका जवाब कौन देगा? इतने बड़े संस्थान का, जिस पर इस देश के लोग विश्वास करते हैं, उसका इस तरह का मूल्यांकन करके, इस तरह से विनाशकारी आईपीओ लाकर आपको क्या मिला- 18 बिलियन डॉलर का लॉस है।ये भी सच है कि पिछले दो महीने में मजबूरन सरकार को अपना ये जो रेकलेस प्राइवेटाइजेशन था, ये जो अंधा-धुंध निजीकरण था, इसको रोकना पड़ा। मैं चार चीजों का नाम यहाँ पर लूंगी।
बीपीसीएल, कॉनकोर, पवन हंस, सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड।
बीपीसीएल की बिक्री क्यों रोकी गई – ये नवरत्ना है, इसमें से कुछ महारत्ना कंपनी हैं और आपकी जानकारी के लिए बता दूं,ये वो कंपनी हैं, जो प्रॉफिटेबल हैं, ये मुनाफा कमाती हैं, ये स्ट्रैटेजिक हैं, ये जरुरी हैं इस देश के लिए। ऐसी कंपनियों को बेचा जा रहा है। एक चीज होती है, चलो कंपनी मुनाफा नहीं कमा रही है, लॉस में है और नॉन स्ट्रैटेजिक सेक्टर में है। ये स्ट्रैटेजिक सेक्टर में कंपनी हैं, ये मुनाफा कमाती हुई कंपनी हैं और अभी 10 सेकंड में बताएंगे कि एक्चुअल कारण क्या है, बेचने का। खैर बीपीसीएल से बात शुरु करते हैं, बीपीसीएल की बिक्री इसलिए रोकी गई, क्योंकि तीन में से दो निवेश करने वाले लोग थे, वो भाग गए, उनको इस सरकार की नीतियों पर विश्वास नहीं है। उनको जिस तरह की ये कानून, नियम बनाते हैं, उस पर विश्वास नहीं है, तो बीपीसीएल की सेल को रोक दिया गया।
पवन हंस लिमिटेड; चाहे ऑफ श्योर ड्रिलिंग हो, तेल ढूंढने के लिए ड्रिलिंग की जाती है, चाहे बॉर्डर एरिया में आवागमन हो सेना का, बीएसएफ का, फोर्सेस का, पवन हंस बहुत काम आता है। पवन हंस की 51 प्रतिशत भागीदारी एक ऐसी कंपनी को बेच दी गई, जिसके खिलाफ एनसीएलटी कोलकाता ने फैसला सुनाया हुआ है, क्योंकि वो दिवालिया कंपनी के लिए जो अपनी एक कमिटमेंट थी, उसको पूरा नहीं कर पाई थी, ऐसी कंपनी के लिए बेच दी गई। सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, ये साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय का एक पीएसयू है। क्रिटिकल मैटेरियल प्रोवाइड करता है डिफेंस को, एनर्जी डिपार्टमेंट को, एनर्जी प्रोग्राम को इंडिया के और रेलवे को। सिवियरली अंडर वैल्यू किया गया 100 प्रतिशत इक्विटी एक ऐसी कंपनी को बेच दी गई, जिसका कोई सांइटिफिक बैकग्राउंड नहीं था और भाजपा के पॉलिटिशन से उसके लिंक थे। जब पता चला कि दो बिडर के ही आपस में संबंध हैं, तो उसको रोका गया और ये भाजपा से ही लिंक्ड लोग थे और कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कॉनकोर जो रेलवे का एक पार्ट है, कांग्रेस ने इसी प्लेटफार्म से उसके खिलाफ लगातार आवाज उठाई थी। एक बैक डोर अरेंजमेंट हो रहा था कि कैसे उनके द्वारा अर्जित उनकी जो लैंड पार्सल थे, उनको प्राइवेट कंपनी को दिया जा रहा था, बिना किसी मूल्यांकन के, बिना किसी पैसे को लिए। उसको भी रोका गया। तो पिछले दो महीने में एलआईसी का सर्वनाश करने के बाद पवन हंस, कॉनकोर, सीइएल और बीपीसीएल की सेल को रोकने पर विवश हुई है, ये सरकार।
लेकिन अब असलियत जाननी जरुरी है। असलियत ये है कि जो सरकार बड़ी-बड़ी बातें करती है, वो वाकई में इन कंपनी को, इनके लैंड पार्सल के लिए बेच रही है। अधिकतर कंपनी के पास काफी अधिक संख्या में लैंड पार्सल हैं, सैकड़ों एकड़ भूमि है और उसको बेचकर कुछ चुनिंदा निजी क्रोनी कैपिटलिस्ट के हाथ में देने का काम है और इसलिए ये हो रहा है। कॉनकोर के पास रेलवे स्टेशन के पास जमीन है, शिपिंग कॉर्पोरेशन के पास महाराष्ट्र, खासतौर से मुंबई में जमीन है। भारत अर्थ मूवर्स के पास वेस्ट बंगाल और कर्नाटक में जमीन है और सिंगल माइंडेड फोकस ये है कि इन कंपनियों को बेचो, इनके पास जो भूमि है, उसको हथियाओ, कब्जाओ और उसको अपने चंद पूंजीपति मित्रों के हाथ में बेच दो, सिर्फ और सिर्फ ये फोकस है, जमीनों को हड़प कर बेच देने का और एक चीज यहाँ पर उजागर करना और जितना मैं ज्यादा बोलूं, उतना कम रहेगा, जरुरी है। सरकार क्या झुनझुना बजा रही है, हम अग्निवीरों को उनकी चार साल की नौकरी के बाद पीएसयू में नौकरी देंगे। पीएसयू में नौकरी तो बाद में दीजिएगा, डिफेंस के पीएसयू को क्यों बेच रहे हैं, जहाँ पर उनको आप नौकरी देना चाह रहे हैं? पहले इसको बताइए। एक हाथ में कहते हैं नौकरी देंगे, दूसरे हाथ से पीएसयू बेच रहे हैं। तो इनका बायां हाथ, इनके दायने की भी नहीं सुनता और यही दोहरा मापदंड है, यही डबल स्पीक है, इस सरकार का।
आपने 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बेच दी। आपने लगातार डीआरडीओ को कमजोर किया। आपने भारत अर्थ मूवर्स, जो डिफेंस का काम करता है, उसको बेचने का मन बना लिया। आपने बीपीसीएल को बेचने का मन बना लिया, जिसने आधुनिक भारत का निर्माण किया, बैंगलोर जैसी सिटी बनाई है।तो इसलिए हमारा कहना है कि बेचे जाओ पार्टी, का ये मंसूबा है। अपने से कुछ बना नहीं 8 साल में। एक भी ऐसी कंपनी, एक भी ऐसा संस्थान, एक भी ऐसा इंस्टीट्यूशन, भारतीय जनता पार्टी, जिसका नाम बेचे जाओ पार्टी है, बता दें, जो इन्होंने 8 साल में बनाया और एक भी इंस्टीट्यूशन, हर चीज बेचने का काम किया है। इनका मकसद ये है और हमारा मकसद है कि हम ऐसा होने नहीं देंगे और इस रेकलेस प्राइवेटाइजेशन का हर तरह से विरोध करेंगे और भाजपा की मिलीभगत जो असल में लैंड हड़पने की है, उसका भी पुरजोर विरोध करेंगे और एक बार फिर सोती हुई सरकार को बताना जरुरी है, क्योंकि हमने बात बैंक से शुरु की थी सरकारी बैंकों से। सरकारी बैंक सिर्फ मुनाफे का सेंटर मत देखिए, सरकारी बैंक इस देश के एंपावरमेंट में, दूर दराज के इलाकों में, डेवलपमेंट में बहुत जरुरी है, कृषि के लिए जरुरी है, छोटे मध्यम उद्योगों के लिए जरुरी है। उनको खत्म करके आप इकॉनोमी का जो बंटाधार कर चुके हैं, उसको और नष्ट कर दीजिएगा।