अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि “ग़म इस बात का नहीं है कि वो बेवफ़ा निकला, अफ़सोस महज़ इतना है कि उसे क्या समझा था और क्या निकला” और जो वफा लुटियन्स दिल्ली के एक बंगले की मोहताज हो जाए, वो वफा किस काम की, वो कल जाती है, आज जाए। जिस नजरिए के खिलाफ, जिस विचारधारा के खिलाफ 50 साल से जो आदमी लड़ रहा हो, आज उसी नजरिए का ताबेदार बन जाए तो अफ़सोस तो सबको होता है। न केवल हमें हो रहा है, अफ़सोस आज उनको भी हो रहा है, जिनकी वो खिलाफत करते थे। जो हमारे नहीं हुए, वो तुम्हारे क्या होंगे? आज जब वो बादशाह सलामत की शान में कसीदे पढ़ते हैं तो हंसी आती है। जिसको खुदा माना था हमारे कुछ कार्यकर्ताओं ने, वो बुत मिट्टी का भी नहीं निकला।
हम जानना चाहते हैं साहब आपसे कि आपको रात को नींद कैसे आती होगी, सुबह आईना कैसे देखते होगे और दिनभर अपनी सोहबत में खुद कैसे गुजार लेते होंगे? ख्याल तो आता होगा और वो ख्याल सताता भी होगा कि जिस पार्टी ने एक कार्यकर्ता को इतना बड़ा नेता बनाया, ऐसे-ऐसे पद दिए कि वो एक कद्दावर नेता की श्रेणी में आ जाएं, आज वो उसी पार्टी को कोस रहे हैं। उन्हें भी बुरा लगता होगा, हमें पूरा भरोसा है उन्हें बुरा लगता होगा।आप सबने बचपन में एनसीईआरटी या जो भी पढ़ा होगा, बाबा भारती और डाकू खड़ग सिंह की वो कहानी जरूर पढ़ी होगी ‘हार की जीत’ नाम था कहानी का, बचपन में मैंने पढ़ी थी, कोर्स बुक में होती थी वो। कैसे डाकू खड़ग सिंह दीन-हीन अवस्था में भेस बदल कर, अपाहिज का भेस बनाकर सड़क के किनारे पड़ा हुआ था और बाबा भारती अपने प्रिय घोड़े सुल्तान पर सैर करने निकले हुए थे। डाकू खड़ग सिंह ने उनको गुहार लगाई कि रुकिए, मेरी मदद कर दीजिए, मुझे वैद्य तक ले जाईए।
बाबा भारती ने डाकू खड़ग सिंह को घोड़े पर बैठाया और अचानक डाकू खड़ग सिंह ने असली रूप दिखाया और घोड़ा लेकर भाग गया, जब वो भाग रहा था तो बाबा भारती ने उसे रोका घोड़ा ले जाओ, नहीं चाहिए अब घोड़ा, लेकिन मेरी एक बात सुनते जाओ, किसी को इस वाकया का जिक्र मत करना नहीं तो लोग एक-दूसरे पर विश्वास करके, एक-दूसरे की मदद करना बंद कर देंगे।ये कहानी हम सबके लिए बहुत आवश्यक हैं, हम सब जो कार्यकर्ता इस पार्टी के लिए लड़ रहे हैं, हमारे नेतृत्व के लिए लड़ रहे हैं, हमारी विचारधारा के लिए लड़ रहे हैं, आज हमारा नेतृत्व हम पर किस मुंह से विश्वास रखेगा, जब 50 साल पुराने नेता, जिनको इतने पदों से नवाजा गया, वो ऐसा धोखा दे सकते हैं, तो बताईए हम पर किस तरह से हमारा नेतृत्व भरोसा करेगा, हम सबका भरोसा तोड़ा, पार्टी का भरोसा तोड़ा।खैर जो हुआ सो हुआ। जब इन्होंने पार्टी छोड़ी थी तो एक टिप्पणी की थी कि आज मैं आजाद हो गया हूं। 2 दिन से इनकी टिप्पणियां हम जो सुन रहे हैं तो हमें भरोसा हो गया है कि आप गुलाम हो गए हैं, आजाद नहीं हुए।एक प्रश्न पर कि सिंधिया को लेकर आपकी प्रतिक्रिया या बाकी नेताओं से कुछ ज्यादा तीखी आ रही है, बाकी लोगों से वो ज्यादा इम्पोर्टेंट थे क्या? श्री पवन खेड़ा ने कहा कि बात इम्पोर्टेंट की नहीं है। आप जरा सी धूप तेज हो तो अपना घर छोड़ दें, अपने रिश्तें बदल दें, अपनी नजरें बदल दें, ठीक है वो आपका ज़मीर है, आप जानिए, लेकिन जिस घर में आपने इतने दशक गुजारे हों, जिस घर ने आपको सबकुछ दिया हो, प्यार दिया हो, कद दिया हो, पद दिया हो, मोहब्बत दी हो, पहचान दी हो उस घर और उस परिवार के खिलाफ जब कोई बोलता है तो उसका जवाब देना और माकूल जवाब देना जरूर ही चाहिए और वो देना बनता है।आपने नाम लिया उनका, जो खुद अपने आपको महाराज कहलाना बहुत पसंद करते हैं और महाराज नहीं बोलो तो आपकी तरफ देखते भी नहीं हैं और मैं तो ज्योमेट्री भी उन्हीं को देखकर सीखा हूं, किस एंगल पर उनके सामने झुकना है वो बड़ा ध्यान से, बारीकी से देखते हैं। मैं ज्योमेट्री में बड़ा कमजोर था, लेकिन सिंधिया साहब को देखा तो ज्योमेट्री समझ में आ गई कि कितने डिग्री पर झुकना है उनके सामने तो वो प्रभावित होंगे, वो प्रसन्न होंगे, उनके चेहरे पर मुस्कान आएगी, वो आज टिप्पणी कर रहे हैं कि फर्स्ट सिटीजन कौन है, वो अपने आपको हमेशा फर्स्ट सिटीजन मानते हैं। संविधान में महाराज नाम की कोई व्यवस्था है नहीं, इस प्रणाली की व्यवस्था सरदार पटेल और डॉ० बाबासाहब आम्बेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने समाप्त कर दी थी, लेकिन आज भी वो महाराज हैं, महाराज पर क्या बोलें?
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